नई दिल्ली । सरसों की नई फसल की आवक बढ़ने से सरसों तेल -तिलहन की कीमतों में गिरावट देखने को मिली है. वहीं दूसरी ओर विदेशी बाजारों में तेजी के बीच आयातित तेलों के भाव रिकॉर्ड क़ीमत पर है. बाजार सूत्रों का कहना है कि भारत अपने खाद्य तेल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 60% भाग का आयात करता है.
आसमान छू रही हैं कच्चे तेल की कीमतें
रूस और यूक्रेन के बढ़ते तनाव के कारण अब बहुत ही महत्वपूर्ण वस्तुओं के साथ-साथ खाद्य तेलों की आपूर्ति प्रभावित होने की आशंका है. जिस वजह से इन तेलों के दाम मजबूत हुए हैं. विदेशी तेलों के भाव आसमान छू रहे हैं. बता दें कि कच्चा तेल और पालोलीन तेलों के भाव रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुके हैं. वही देशी तेलो में जिस सरसो का दाम बाकी तेलों से लगभग 30 से ₹40 किलो अधिक रहा करता था, अब उन आयातित तेलों के मुकाबले सरसों का दाम लगभग 5 से 7 रूपये किलो नीचे हो गया है. वही दूसरी ओर सीपीओ और पामोलिन जैसे आयातित तेलों के दाम आसमान छू रहे हैं.
उत्तर भारत में सरसो के तेल की खपत अधिक होती है, वहीं तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र और गुजरात में सूरजमुखी, सोयाबीन, बिनोला, मूंगफली जैसे अन्य तेलों की अधिक खपत होती है. सरसों द्वारा उत्तर भारत की जरूरतें तो काफी हद तक पूरी हो जाती है. युद्ध बढ़ने की वजह से सूरजमुखी और सोयाबीन डीगम जैसे बाकी खाद्य तेलों का आयात प्रभावित हो सकता है. सरकार की ओर से जारी सहकारी संस्था हाफेड और नाफेड को बाजार भाव पर सरसों की खरीद कर इनका स्टॉक करना चाहिए, जिससे कि मुश्किल के दिनों में मददगार साबित हो सके.
जब आयातित तेलो के दामों में वृद्धि होगी, तो ऐसी स्थिति में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर तो सरसो का मिलना बेहद ही मुश्किल है. मंडियों में सरसों की नई फसल की आवक बढ़ रही है जिस वजह से पिछले सप्ताह सरसो के भाव में 150 रूपये प्रति क्विंटल गिरावट आई.
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