दिल्ली: चांदनी चौक में आज भी अनेकों राज छुपाये हुए है ‘नमक हराम की हवेली’, बड़ा काला है इससे जुड़ा अतीत

नई दिल्ली | राजधानी दिल्ली का अपना एक अलग ही इतिहास रहा है. इतिहासकार कहते हैं कि दिल्ली 7 बार उजड़ी है और फिर बनी है. अपने सीने में यह तमाम तरह के किस्से दफन किये बैठी है. इनमे वफादारी भी है, दगाबाजी भी है, जंग भी है और प्यार भी है. ऐसा ही एक किस्सा है ‘नमक हराम’ की हवेली का. दरअसल, जिस हवेली की हम बात कर रहे हैं वह पुरानी दिल्ली के कूचा घासीराम गली में स्थित है. जो भी इस हवेली के सामने से गुजरता है उसकी जुबान से बस यही निकलता है ‘गद्दार’.

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Chandani Chowk

इंदौर के महाराज होलकर ने किया अंग्रेजों का सामना

दरअसल, बात उस दौर की है जब 19वीं सदी में तमाम रियासतों ने अंग्रेजों के सामने हार मान ली थी. तब इंदौर के नौजवान महाराजा यशवंत राव होलकर अंग्रेजों का डट कर सामना कर रहे थे. भवानी शंकर खत्री नाम का एक शख्स होलकर के वफादारों में शामिल था, लेकिन एक बार आपसी अनबन के कारण खत्री ने गद्दारी करके अंग्रेजों से सांठ- गाँठ कर ली. वह अंग्रेजों को होलकर और मराठा सेना से जुडी सारी गुप्त जानकारियां पहुंचाने का काम करने लगा.

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1803 में हुआ भयंकर युद्ध

आखिरकार 1803 में होलकर और अंग्रेजों के बीच पटपड़गंज में भयंकर युद्ध शुरू हो गया. अपनी किताब ‘‘Patparganj: Then and Now” में पत्रकार आरवी स्मिथ लिखते हैं कि यह युद्ध 3 दिन तक चला था. इसमें मराठों का मुगलों ने भी साथ दिया था, लेकिन इस युद्ध में मराठा फौज को हार का सामना करना पड़ा.

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युद्ध जीतने के बाद अंग्रेजों ने खत्री को इनाम स्वरूप चांदनी चौक में एक शानदार हवेली तोहफे में दे दी, जहां वह अपने परिवार के साथ रहने लगा. उसके बाद, लोग खत्री को नमक हराम और उस हवेली को ‘नमक हराम की हवेली’ कहने लगे. आज सवा 200 साल के बाद भी खत्री के दामन पर लगा दाग नहीं मिट पाया है. लोग उस आलीशान हवेली को आज भी ‘नमक हराम की हवेली’ कहते हैं.

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