नई दिल्ली | केन्द्र सरकार द्वारा पिछले महीने बासमती चावल के निर्यात पर सशर्त प्रतिबंध से किसानों में एक नया गुस्सा सुलग रहा है. किसानों ने इस प्रतिबंध को हटाने की मांग करते हुए तर्क दिया है कि बासमती चावल ग़रीब की थाली का भोजन नहीं है. ऐसे में इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का कोई औचित्य नहीं बनता है. सरकार के इस फैसले से सिर्फ बड़े व्यापारियों और राइस मिल मालिकों को ही फायदा पहुंचेगा.
उत्तरी- पश्चिमी दिल्ली के गांव दरियापुर कलां निवासी एक किसान सत्यवान सहरावत ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि बासमती गरीबों की भोज्य सामग्री नहीं है. ऐसे में समझ नहीं आ रहा है कि निर्यात पर प्रतिबंध की वजह क्या है. उन्होंने बताया कि बासमती धान की चार किस्में पूसा 1847, 1692, 1509 और 1885 की अवधि 90- 100 की होती है.
सत्यवान का कहना है कि अब हम किसानों को यह चिंता सता रही है कि अगले कुछ सप्ताह में धान की इन किस्मों की कटाई होनी है. लेकिन निर्यातक की मांग कमजोर है क्योंकि सरकार ने निर्यात मूल्य पर सीमा लगा दी है. ऐसे में जब वो मंडियों में अपनी फसल लेकर पहुंचेंगे तो कमजोर मांग की दशा में उनकी फसल को कौन खरीदेगा. ऐसी सूरत में किसानों को अपनी फसल को घर पर स्टोर करना पड़ेगा. यदि ऐसा होता है तो किसान तंगहाली से गुजरेगा क्योंकि मौजूदा फसल का ऋण चुकाने, अगली फसल की बिजाई और तत्काल खर्चों को पूरा करने के लिए पैसों की जरूरत होती है.
उल्लेखनीय है कि 25 अगस्त को जारी सरकारी निर्देश के अनुसार, बासमती चावल के निर्यात के लिए 1,200 डॉलर / टन फ्लोर प्राइस प्रतिबंध 15 अक्टूबर तक प्रभावी रहेगा और अक्टूबर 2023 के पहले सप्ताह में स्थिति की समीक्षा की जाएगी. किसानों का कहना हैं कि इस अवधि में यानि मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक बासमती किस्मों की खरीद का सीजन होता है और अगर सरकार ने निर्यात से प्रतिबंध नहीं हटाया तो उनकी स्थिति और खस्ताहाल हो जाएगी.
सहरावत ने दावा करते हुए कहा कि न्यूनतम निर्यात मूल्य प्रतिबंध से केवल बड़े व्यापारियों और मिल मालिकों को फायदा पहुंचेगा. उन्होंने कहा कि वे इस दर (1,200 डॉलर/टन) पर अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में हमारे चावल की कम मांग का हवाला देंगे, जिससे किसानों को मजबूरन कम भाव पर फसल बेचनी पड़ेगी.
उन्होंने कहा कि बाद में प्रतिबंध हटने पर भी किसानों को फायदा नहीं मिल सकेगा क्योंकि तब तक किसान अपनी फसल बेच चुके होंगे. इसलिए सहरावत समेत कई किसानों ने सरकार से न्यूनतम निर्यात मूल्य प्रतिबंध हटाने का अनुरोध किया है. बता दें कि बासमती चावल के उत्पादक राज्यों में मुख्य रूप से हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, यूपी, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू- कश्मीर शामिल हैं.
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