नई दिल्ली, Gandhi Jayanti 2022 | हम सभी बचपन से ही किताबों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Gandhi Jayanti 2022) के आदर्शों और संदेशों के बारे में पढ़ते रहे हैं. 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्में गांधी जी ने भारत और भारत की जनता के लिए क्या किया, इस बात से तो हर कोई परिचित है लेकिन सच तो यह है कि गांधी के कार्यों को देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में याद किया जाता है. जिस आजाद भारत में आराम से रह रहे हैं, वह गांधी जी के अथक प्रयासों का परिणाम है. यही कारण है कि हर साल गांधी जयंती के दिन हम सभी उनके कार्यों और आदर्शों को याद करते हैं. आइए गांधी जयंती के इस खास अवसर पर आज हम आपको गांधी से जुड़े चार ऐसे प्रसंग बताते हैं जो आपने शायद ही सुनी हो….
पहला प्रसंग
एक बार एक मारवाड़ी सज्जन गांधी जी से मिलने आए. उन्होंने अपने सिर पर एक बड़ी पगड़ी बांधी हुई थी.
उन्होंने गांधीजी से कहा – ‘गांधी टोपी’ तुम्हारे नाम से चलती है और तुम्हारा सिर नंगा है. ऐसा क्यों?
इस पर गांधीजी ने हंसते हुए उत्तर दिया, ‘आपने अपने सिर पर 20 आदमियों की टोपी का कपड़ा पहना है. फिर 19 आदमी टोपी कहाँ पहनेंगे? मैं उन 19 में से एक हूं. मारवाड़ी सज्जन ने गांधीजी की बात सुनकर शर्म से सिर झुका लिया.
दूसरा प्रसंग
महात्मा गांधी 1921 में खंडवा गए थे. वे लोगों से स्वदेशी का संदेश देने के लिए कह रहे थे यानी अपने देश में बनी वस्तुओं का उपयोग करें और विदेशी वस्तुओं का त्याग करें. वहां उनकी मुलाकात में चमकीले कपड़े पहने कुछ लड़कियों ने स्वागत गीत गाया.
उसके बाद वहां मौजूद स्थानीय नेताओं ने गांधी को आश्वासन दिया कि वे हर तरह से स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देंगे.
इस पर गांधीजी ने उनसे कहा, ‘मुझे अभी भी केवल आश्वासन ही दिया जा रहा है जबकि यहां गीत गा रही लड़कियों ने फ्रिंज के साथ विदेशी कपड़े पहनकर मेरा स्वागत किया. मैं स्वदेशी प्रचार, खादी के बारे में दृढ़ निश्चय चाहता हूं.
तीसरा प्रसंग
साल 1929 की बात है. गांधी जी भोपाल गए थे. वहां जनसभा में उन्होंने समझाया, ‘मेरा क्या मतलब है जब मैं कहता हूं कि रामराज आना चाहिए?’
रामराज का मतलब हिंदुराज नहीं है. रामराज से मेरा तात्पर्य ईश्वर के राज्य से है. मेरे लिए सत्य और सत्य कर्म ही ईश्वर है. प्राचीन रामराज का आदर्श लोकतंत्र के आदर्शों से काफी मिलता-जुलता है और कहा गया है कि रामराज में सबसे गरीब व्यक्ति को भी कम खर्च में और कम समय में न्याय मिल सकता था.
कहा जाता है कि रामराज में कुत्ते को भी न्याय मिल सकता है.
चौथा प्रसंग
यह घटना 25 नवंबर 1933 की है, जब गांधी जी रायपुर से बिलासपुर जा रहे थे. रास्ते में कई गांवों में उनका स्वागत किया गया लेकिन एक जगह करीब 80 साल की एक दलित बूढ़ी औरत बीच सड़क पर खड़ी होकर रोने लगी. उनके हाथों में फूलों की माला थी. उन्हें देखकर गांधीजी ने गाड़ी रोक दी.
लोगों ने बुढ़िया से पूछा – वह क्यों खड़ी है? बुढ़िया ने कहा- ‘मैं मरने से पहले गांधी के पैर धोना चाहती हूं और इस फूल की माला को अर्पित करना चाहती हूं, तभी मुझे मोक्ष मिलेगा.
गांधीजी ने कहा- ‘मुझे एक रुपया दो तो फिर पैर धुलवा सकता हुं.’ बेचारी बुढ़िया के पास पैसे कहाँ थे? फिर भी बोली- ‘ठीक है! मैं घर जाती हूँ और पैसे लाती हूँ लेकिन गांधी जी रुकने वाले नहीं थे. बुढ़िया बहुत निराश हुई.
गांधीजी को उनके दर्द के आगे झुकना पड़ा और उन्होंने अपने पैर धोना स्वीकार कर लिया. बुढ़िया ने बड़ी श्रद्धा से गांधी के पैर धोए और उन्हें फूलों की माला अर्पित की. उस समय उसका चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे उसे कोई अमूल्य संपत्ति मिल गई हो.
फिर गांधी जी बिलासपुर पहुंचे. वहां उनके लिए एक मंच बनाया गया था, जिस पर बैठकर उन्होंने जनसभा को संबोधित किया. जब सभा समाप्त हुई और गांधीजी चले गए, तो लोगों ने उस मंच से ईंटें, मिट्टी और पत्थर, सब कुछ ले लिया. यहां तक कि मंच का नाम भी मिटा दिया गया. उस मंच का एक-एक कण लोगों के लिए पूजनीय और पवित्र हो गया था.
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