नई दिल्ली, Bharat Jodo Yatra | लोकसभा चुनाव में करीब डेढ़ साल का समय बचा है, लेकिन देश के सियासी रंग अब घुलने लगे हैं. विपक्षी दलों ने एकजुटता का रोना रोया है. बीजेपी 2024 में सत्ता की हैट्रिक लेने के लिए बेताब है.बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी एकता अभियान में शामिल हो गए हैं तो कांग्रेस ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू की है, जिसका नेतृत्व राहुल गांधी कर रहे हैं. हालांकि पार्टी इस दौरे को गैर-राजनीतिक बता रही है, लेकिन इसका राजनीतिक मकसद जगजाहिर है.
कहा जा रहा है कि इस ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के जरिए कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को फिर से शुरू करने की कोशिश कर रही है. अगर ऐसा है तो यह राहुल गांधी पर कांग्रेस का सबसे बड़ा और आखिरी सियासी दांव हो सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले 10 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था और इसका दोष भी राहुल पर ही आया था. 2019 के लोकसभा चुनाव की हार भी उन्हीं के नाम लिखी गई थी. राहुल भले ही दो दशक से राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय हैं, लेकिन चुनावी राजनीति में अब तक कोई बड़ा जादू नहीं कर पाए हैं. ऐसे में उनके नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं और कांग्रेस नेता एक-एक कर पार्टी छोड़ रहे हैं.
शायद राहुल गांधी ने कांग्रेस के बिखरते जनाधार को एकजुट करने के मकसद से ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू की है. पांच महीने के इस दौरे में वह कार्यकर्ताओं में एक नई भावना का संचार करने और पार्टी के संगठन को मजबूत करने के प्रयास करते नजर आएंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने खोए राजनीतिक आधार के साथ राहुल गांधी को एक मजबूत नेता के रूप में इस पदयात्रा के जरिए स्थापित कर पाएगी.
इतिहास पर नजर डालें तो देश में कई पदयात्राएं हुई हैं. पदयात्रा का भी बहुत लाभ तब हुआ है जब वह एक आंदोलन के रूप में रही हो. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दांडी यात्रा हो या आडवाणी की रथ यात्रा. यंग तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर की ‘भारत एकता यात्रा’ पूरे देश में राजनीतिक रूप से काफी सफल रही. इसी तरह राजीव गांधी ने भी देश को जानने और समझने के लिए पदयात्रा शुरू की है. आंध्र प्रदेश में, राज शेखर रेड्डी और जगन मोहन रेड्डी ने तेलंगाना को एक अलग राज्य बनाने के लिए खुद को राजनीतिक रूप से स्थापित करने के लिए अलग-अलग समय पर मार्च निकाले हैं. इसका परिणाम यह हुआ कि वे बाद में मुख्यमंत्री बने.
दिग्विजय सिंह ने निकाली थी नर्मदा यात्रा
कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने साल 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नर्मदा यात्रा की थी, जिसके माध्यम से हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला करने की भाजपा की कोशिश सफल रही थी. इसके अलावा दिग्विजय की छवि एक गंभीर राजनेता की भी बनी थी. इसी तरह सचिन पायलट ने वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के खिलाफ पूरे राज्य में मार्च कर राजस्थान में माहौल बना दिया था. इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस दोनों राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही. ऐसे में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कितनी सफल होती है यह तो वक्त ही बताएगा.
कांग्रेस के मौजूदा राजनीतिक हालात पर नज़र डालें तो पार्टी में नेतृत्व को लेकर असमंजस की स्थिति है. एक तरफ पार्टी नया अध्यक्ष चुनने के लिए चुनाव की बात कर रही है तो दूसरी तरफ राहुल गांधी का नेतृत्व स्थापित करने की कोशिश हो रही है. कांग्रेस के कई दिग्गज नेता खुलेआम राहुल गांधी के नेतृत्व पर भरोसा जता रहे हैं, वहीं एक तबका भी है जो कांग्रेस की कमान एक गैर गांधी को सौंपने की वकालत कर रहा है. यह भी सच है कि राहुल के नेतृत्व में पार्टी को कोई बड़ा राजनीतिक लाभ नहीं मिला है.
देश एक बार फिर चुनाव की दहलीज पर खड़ा है. ऐसे में राहुल गांधी ने देश की जमीनी हकीकत जानने और अपने पैरों से नापने के लिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक पदयात्रा शुरू की है. कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष का चुनाव छोड़कर राहुल गांधी 3570 किलोमीटर की पदयात्रा पर निकल पड़े हैं. कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ 12 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुजरेगी. राहुल गांधी ने इस पांच महीने की पदयात्रा तमिलनाडु से शुरू की है और वह 150 दिन की पदयात्रा करेंगे.
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा ऐसे समय में शुरू हो रही है जब कांग्रेस न केवल अपने नेतृत्व से बल्कि राजनीतिक संकट से भी घिरी हुई है. हाल ही में जब ईडी ने नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी को पूछताछ के लिए बुलाया था तो कांग्रेस जमीन पर नजर आई थी, लेकिन यह मामला जनता के मुद्दे से जुड़ा नहीं था. भाजपा यह भी आरोप लगाती रही है कि कांग्रेस सारे धरना-प्रदर्शन गांधी परिवार को बचाने के लिए ही करती है, लेकिन अब जो पदयात्रा शुरू हुई है उसका सीधा संबंध जनता से जुड़े मुद्दों से है. कांग्रेस का दावा है कि इस यात्रा के जरिए वह बढ़ती महंगाई और सामाजिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दों पर आम लोगों के बीच बहस पैदा करने की कोशिश करेगी।
राहुल की पदयात्रा से क्यों दूर हैं ये राज्य?
कांग्रेस की भारत संपर्क यात्रा के रोडमैप के मुताबिक यह यात्रा तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़ और जम्मू-कश्मीर से होकर गुजरेगी. दिलचस्प बात यह है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश, जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं उसे भारत जोड़ो यात्रा में शामिल नहीं किया गया है. हालांकि कांग्रेस का सफर राजस्थान से उसी वक्त गुजरेगा, जब दोनों राज्यों में चुनाव की घोषणा हो चुकी होगी.
यूपी में भी पदयात्रा का नक्शा काफी हल्का रहा है. कार्यक्रम को केवल बुलंदशहर में रखा गया है. इसी तरह यह पदयात्रा बिहार, बंगाल और झारखंड से नहीं गुजरेगी. वहीं अगले साल छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं जहां पदयात्रा नहीं निकाली जाएगी. हालांकि, राजस्थान के सात जिले 500 किमी की दूरी तय करेंगे जबकि अधिकांश हिंदी बेल्ट राज्यों और पूर्वोत्तर को पूर्ण पदयात्रा के लिए जगह नहीं मिली है. ऐसे में सवाल यह भी है कि इन राज्यों को पदयात्रा के रास्ते से क्यों दूर रखा गया है, जबकि ये राज्य लोकसभा चुनाव के लिहाज से बेहद अहम हैं.
क्या यात्रा के जरिए जन नेता बन पाएंगे राहुल
भारत जोड़ो यात्रा के साथ कांग्रेस के इस कदम को राहुल गांधी की छवि को मजबूत करने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है. इसलिए कांग्रेस ने साफ तौर पर कहा है कि राहुल यात्रा के दौरान किसी होटल में नहीं रुकेंगे, बल्कि सामान्य तरीके से यात्रा करेंगे और कंटेनर में रहेंगे और पार्टी नेताओं के साथ भोजन करेंगे. इससे एक बात तो साफ है कि राहुल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के जरिए आम लोगों से जुड़ने की कोशिश करेंगे. इसलिए ग्लैमर से दूर सरल तरीके से यात्रा करने का रोडमैप बनाया गया है, ताकि राहुल को एक जननेता के रूप में स्थापित किया जा सके. राजनीतिक विश्लेषक भी इसे 2024 की तैयारी मानते हैं और राहुल गांधी को उन्हें जन नेता बनाने की रणनीति के तौर पर देखते हैं. कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह जमीनी स्तर पर लोगों को जानने के साथ-साथ पार्टी के ब्लॉक, शहर और गांव स्तर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से जुड़ सकें.
लंबी पैदल यात्रा में सबसे बड़ी चुनौती
भारत छोड़ो आंदोलन के 80 साल बाद कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा शुरू की है. कांग्रेस के भारत छोड़ो आंदोलन का लक्ष्य देश की आजादी थी. जबकि पार्टी की ओर से मौजूदा यात्रा को लेकर राष्ट्रीय एकता की बात की जा रही है. हालांकि, तब राउंड दूसरा था और अब राउंड दूसरा. सफर लंबा है तो चुनौतियां भी कई होंगी.
कांग्रेस के साथ-साथ राहुल गांधी को भी यह समझना होगा कि प्राइम टाइम से ज्यादा उन्हें सोशल मीडिया पर अलर्ट रहना होगा. महंगाई के खिलाफ हाल ही में हुई हल्ला बोल रैली में आटा-लीटर को लेकर राहुल गांधी के बयान पर जिस तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिली है, पूरी रैली उसी पर केंद्रित हो गई है. एक तबका इंतजार कर रहा है कि राहुल गांधी कब ऐसी गलती करें. कहने को यह छोटी सी बात हो सकती है लेकिन कांग्रेस के लिए मुसीबत बन जाती है. ऐसे में देखना होगा कि क्या भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए जीवन रेखा बन पाएगी.
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