चंडीगढ़ । हियरिंग केयर फार आल–जांच-पुनर्वास-संवाद…..इसी थीम पर इस वर्ष विश्व श्रवण दिवस मनाया गया था. इसका उद्देश्य लोगों को जागरूक करना था. क्या आप जानते हैं कि साल-दर-साल बहरेपन के मरीज बढ़ रहे हैं. ईयरफोन का इस्तेमाल, वातावरण में शोरगुल बहरेपन का बड़ा कारण है.
सिविल अस्पताल की नाक-कान-गला विशेषज्ञ डा. शिवांजलि ने जागरण को यह जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि जिला की करीब छह फीसद आबादी को आशिंक या पूरी तरह बहरेपन की समस्या है. बुजुर्ग, सड़कों-फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर व यातायात नियंत्रण करने वाले पुलिसकर्मी-होमगार्ड्स अधिक हैं. रोजाना ओपीडी की बात करें तो 80-90 मरीज पहुंचते हैं. इनमें से 60 फीसद मरीज बहरेपन के शिकार होते हैं. तकरीबन 10 फीसद को हियरिंग मशीन की जरूरत होती है. डा. शिवांजलि ने बताया कि वाहनों, डीजे, कारखानों का शोरगुल के कारण शहर आवाजों का जंगल बन गए हैं. कानों के लिए 60-65 डेसिबल आवाज उपयुक्त है. करीब 90 डेसिबल आवाज को सहन कर लेते हैं.
इससे अधिक शोरगुल कानों को नुकसान पहुंचाता है. गर्भकाल के दौरान महिला को किसी दवा के प्रतिकूल असर का प्रभाव शिशु पर पड़ता है. नवजात को पीलिया होने से भी बच्चा बहरेपन से ग्रस्त हो जाता है. कान बहने, इंफेक्शन के कारण भी सुनने की क्षमता का नुकसान होता है.
इन बातों का रखें ख़ास ध्यान
(1) शोरगुल वाले स्थान पर ईयर प्लग लगाएं.
(2) हेडफोन-ईयरफोन का इस्तेमाल बहुत कम करें.
(3) संगीत सुनते समय वाल्यूम हमेशा मीडियम या उससे नीचे रखें.
सुनने की क्षमता को नुकसान
सुनने की क्षमता को दो तरह से नुकसान पहुंचता है. एक कान की बाहरी और बीच के हिस्से में किसी समस्या से हाेता है. सेंसरीन्यूरल लास कान के अंदरूनी हिस्से में आई किसी गड़बड़ी की वजह से होता है. कान में 15 हजार विशेष श्रवण सेल्स होते हैं. उम्र बढ़ने के साथ सेल्स नष्ट होने लगते हैं. बुजुर्गों को इसलिए कम सुनाई देता है.
बहरेपन के लक्षण
(1) रोजमर्रा की बातचीत को समझने में कठिनाई.
(2) सुनने में सक्षम होने, लेकिन समझने की क्षमता कम.
(3) दूसरों को बार-बार दोहराने के लिए कहना.
(4) दूसरे लोगों को सुनने के बाद थकावट का अहसास होना.
(5) कान में भनभनाहट की आवाज होना.
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