आज अमेरिका चांद पर भेजेगा इंसानी पुतले, यहाँ पढ़े आखिर NASA को इससे क्या हासिल होगा

चंडीगढ़ | नासा (NASA) द्वारा अंतरिक्ष में इंसानी पुतली भेजे जा रहे हैं जिस वजह से हर कोई हैरान है. सब लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर नासा अंतरिक्ष में इंसान को ना भेजकर इंसानी पुतले क्यों भेज रहा है. आइए आज हम आपको बताते हैं नासा किस वजह से इंसानी पुतलों को अंतरिक्ष में भेज रहा है.

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3 नवंबर, 1957: लाइका नाम की फीमेल डाग अंतरिक्ष में जाने वाली पहली जानवर बनी. इसे सोवियत संघ ने भेजा था. इस मिशन के दौरान लाइका की मौत हो गई थी.

3 सितंबर 2022: अब 65 साल बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा 3 हाई-टेक मैनिकिंस यानी दो फीमेल और एक मेल के पुतले चांद पर मिशन पर भेज रही है.

इस व्याख्या में, हम जानते हैं कि नासा इंसानों के बजाय अंतरिक्ष में पुतलों को क्यों भेज रहा है, वे क्यों खास हैं और नासा उनके माध्यम से क्या जानकारी एकत्र करना चाहता है.

नासा चंद्रमा मिशन पर पुतले क्यों भेज रहा है?

अंतरिक्ष में रेडिएशन का खतरा बहुत ज्यादा होता है. ज्यादातर मामलों में कैंसर भी हो जाता है. इसलिए इंसानों को फिर से चांद पर भेजने की तैयारी कर रहा अमेरिका अपने आर्टेमिस-1 मिशन में इंसानों की जगह पुतले भेज रहा है. इन पुतलों को मानिकिंस कहा जाता है और ऐसे विशेष मैनिकिंस का उपयोग वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए किया जाता है.

उनके नाम हेल्गा, जोहर और मूनिकिन कैम्पोस हैं। ये सब मिलकर फेंटम्स कहलाते हैं. इन पुतलों को जर्मनी के एयरोस्पेस सेंटर डीएलआर ने बनाया है. वहीं, तीसरे पुतले का नाम मूनिकिन कैंपोस है, जिसका शरीर एक आदमी जैसा है.

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नासा के ये पुतले बिल्कुल इंसानों जैसे हैं. वे मानव शरीर के ऊतकों की तरह प्लास्टिक से बने होते हैं. उनके पास भी इंसानों की तरह हड्डियां, खाल और फेफड़े होंगे. हेल्गा और जौहर महिलाओं के शरीर की तरह पुतले है. उन्हें अंतरिक्ष में महिलाओं के शरीर पर विकिरण के प्रभाव की जांच के लिए भेजा जा रहा है. तीसरा पुतला मूनिकिन कैम्पोस भेजा जा रहा है ताकि यह जांचा जा सके कि आने वाले समय में इंसानों के लिए चांद पर जाना कितना मुश्किल होगा. यह अंतरिक्ष के बारे में समझ बढ़ाने के वैज्ञानिक प्रयोगों में से एक है.

प्रभाव को रिकॉर्ड करेंगे हजारों सेंसर

पुतलों के शरीर के उन हिस्सों पर सेंसर लगाए गए हैं, जहां मानव शरीर में रेडिएशन का असर सबसे ज्यादा होता है. प्रक्षेपण से लेकर पृथ्वी पर लौटने तक, उनके हजारों सेंसर अंतरिक्ष में मानव शरीर पर विकिरण के संभावित प्रभावों को रिकॉर्ड करेंगे.

हेल्गा और जोहर के लिए ड्रेस कोड

जौहर रेडिएशन से बचाने वाली जैकेट पहने होंगे. इस जैकेट का नाम एस्ट्रोरेड है. दूसरा पुतला हेल्गा बिना जैकेट के भेजा जाएगा. यह विशेष जैकेट एस्टरेड पॉलीइथाइलीन से बनी है, जो जोहर को हानिकारक प्रोटॉन से बचाएगी. यह उसके ऊपरी शरीर और गर्भाशय को ढकेगा. इस मिशन के जरिए हेल्गा और जोहोर पर पड़ने वाले रेडिएशन की तुलना की जाएगी. इससे वैज्ञानिक यह पता लगा सकेंगे कि भविष्य में अंतरिक्ष में जाने वाले इंसानों की बेहतर तरीके से रक्षा कैसे की जा सकती है.

महिला पुतलों को अंतरिक्ष में भेजने पर जोर क्यों?

सवाल उठ रहा है कि नासा सिर्फ महिला पुतलों को ही अंतरिक्ष में क्यों भेज रहा है.इन पुतलों को बनाने वाले जर्मनी के एयरोस्पेस सेंटर डीएलआर के मैट्रोस्का एस्ट्रोरेड रेडिएशन एक्सपेरिमेंट (एमएआरई) के मुख्य वैज्ञानिक थॉमस बर्जर कहते हैं- ‘महिला अंतरिक्ष यात्रियों की संख्या बढ़ रही है, इसलिए हमने महिलाओं के पुतले बनाए. इसका एक कारण यह भी है कि आमतौर पर महिलाओं का शरीर रेडिएशन से ज्यादा प्रभावित होता है. दरअसल, नासा के परीक्षण के मुताबिक महिलाओं का शरीर अंतरिक्ष के लिए जरूरी रेडिएशन को झेल नहीं पाता है।

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फल पर बैठने वाली मक्खियां पहली बार अंतरिक्ष में गई थी

फल पर बैठने वाली मक्खियों को 20 फरवरी 1947 को अंतरिक्ष में भेजा गया था. यह पहली बार था जब कोई जीवित प्राणी अंतरिक्ष में गया था. इसके बाद चूहों, बंदरों, बिल्लियों, मेंढकों, कुत्तों जैसे कई जानवरों को अंतरिक्ष में भेजा गया.

1969 में पहली बार इंसान ने चांद पर कदम रखा था

जुलाई 1969 में नासा ने पहली बार किसी इंसान को चांद पर भेजा था. 21 जुलाई 1969 को अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने.

चांद पर इंसानों को भेजने की कोशिश में नासा का मिशन आर्टेमिस-1

अब 53 साल बाद नासा इंसानों को चांद पर भेजने के प्रयासों के तहत 3 सितंबर को फिर से अपना अंतरिक्ष यान ‘ओरियन’ चांद पर भेजेगा. नासा ने इस मिशन का नाम आर्टेमिस-1 रखा है. यह चांद की सतह पर नहीं उतरेगा बल्कि इसके चक्कर लगाएगा. इसके बाद नासा की योजना 2024 में आर्टेमिस-2 भेजने की है. इसमें अंतरिक्ष यात्री चांद पर कदम रखे बिना ही चांद की कक्षा में लौट आएंगे. 2025 में, नासा द्वारा आर्टेमिस -3 चंद्रमा मिशन लॉन्च करने की उम्मीद है, जिसमें अंतरिक्ष यात्री चंद्र सतह पर उतरेंगे.

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नासा अपोलो 11 मिशन के दौरान चांद पर जाने वाला कुत्ता स्नूपी डॉग काफी मशहूर हुआ था. यह अपोलो मिशन की सफलता के बारे में अमेरिकी लोगों की सोच को दर्शाता है. इस कार्टून चरित्र को चार्ल्स एम. शुल्त्स ने अपनी कॉमेडी श्रृंखला ‘मूंगफली’ में बनाया था. जिस कलम की निब से उन्होंने यह सीरीज बनाई है वह भी आर्टेमिस-1 के साथ अंतरिक्ष की यात्रा करने वाली है. इसके साथ ही बच्चों की पसंदीदा 4 लीग भी चांद की इस यात्रा पर निकलेगी. छोटे बच्चों को अंतरिक्ष के बारे में सिखाने के लिए NASA और LEGO Group पिछले 2 साल से एक साथ काम कर रहे हैं.

अपोलो 11 मिशन का स्मृति चिन्ह और इंजन का छोटा टुकड़ा भी जाएगा चांद पर

नासा के अपोलो 11 मिशन के स्मृति चिन्ह, चंद्रमा की सतह से लाए गए छोटे-छोटे पत्थर और इस मिशन के रॉकेट इंजन का एक छोटा टुकड़ा भी आर्टेमिस-1 के साथ चंद्रमा की यात्रा पर जा रहे हैं. इनके अलावा अलग-अलग पेड़ों के बीज भी आर्टेमिस-1 में चांद पर जा रहे हैं. नासा ने इसी तरह के बीज अपोलो 14 मिशन के साथ भेजे थे. इन्हें वापस लाकर ‘मून ट्री’ के नाम से लगाया गया. यह पेड़ों पर अंतरिक्ष विकिरण के प्रभाव को देखने के लिए किया जाता है. इस मिशन में भाग लेने वाले सभी देशों के झंडे, पिन और पैच भी इस मिशन में जाएंगे. उन्हें वापस लाकर इन देशों में बांट दिया जाएगा.

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