नई दिल्ली | सैनिकों की डायरेक्ट भर्ती क़े स्थान पर ‘अग्निपथ’ योजना से फौजी लेने की व्यवस्था लागू होने के 2 साल बाद अब इसमें बदलाव का एजेंडा बन रहा है. पिछले दिनों सैन्य मामलों के विभाग ने 24 महीने के अनुभव पर तीनों सेनाओं में सर्वे कराया है. इसके आधार पर बदलाव के प्रस्तावों पर विचार किया जा रहा है. सर्वे के दौरान कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निकलकर सामने आए हैं जिनमें बदलाव के लिए इच्छा जताई गई है.
50 फीसदी अग्निवीर हो सकते हैं परमानेंट
इनमें सबसे अहम प्रस्ताव अग्निवीरों को स्थायी सेवा में लेने का कोटा बढ़ाने का है. वर्तमान में 25% अग्निवीर 4 साल की सेवा के बाद फौज में शामिल हो सकते हैं. अब इसे बढ़ाकर 50% तक किया जा सकता है और टेक्निकल सेवाओं में ये 75% तक हो सकता है.
यह भी प्रस्ताव है कि 25% अग्निवीरों को 7 साल के लिए वापस लिया जाए. इनमें तकनीकी रूप से दक्ष अग्निवीरों को प्राथमिकता मिले. वर्तमान में अग्निवीरों की ट्रेनिंग 24 सप्ताह की है.
4 से 6 हफ्ते बढ़ सकती है प्रशिक्षण अवधि
तीनों सेनाओं में हुए सर्वे में सामने आया कि प्रशिक्षण अवधि घटने से सैन्य कौशल पर भी प्रभाव पड़ रहा है. ऐसे में इसे 4- 6 हफ्ते बढ़ाने पर विचार हो सकता है. टेक्निकल मामलों में इसे और भी बढ़ाया जा सकता है. पिछले दिनों हुए लोकसभा चुनाव में भी अग्निवीर योजना एक बड़ा मुद्दा बना था.
इस योजना को लेकर कांग्रेस ने जमकर सरकार पर हमला बोला था. कांग्रेस- सपा ने इसे खत्म करने की घोषणा की थी. अब विपक्ष इसे संसद में उठाने की तैयारी कर रहा है. वहीं, एनडीए में शामिल जदयू भी इसमें बदलाव की मांग कर चुका है. ऐसे में भाजपा पर इसे लेकर दबाव बना हुआ है.
सर्वे में सामने आए बदलाव के कारण
- जब तीनों सेनाओं में सर्वे किया गया तो सर्वे में पता चला है कि अग्निवीरों में देशसेवा की जगह करियर 4 साल के बाद की जिंदगी पर फोकस है.
- अग्निपथ योजना में ग्रामीण की जगह शहरी युवा ज्यादा बढ़ रहे हैं. इससे सेना की समावेशी प्रोफाइल प्रभावित होने की आशंका भी नजर आ रही है.
- अग्निवीरों में स्थायी सेवा में आने की होड़ सबसे मुख्य है. इससे उनके बीच एक- दूसरे को पीछे छोड़ने की भावना जन्म ले रही है.
- अग्निवीरों को पेंशन- ग्रेच्युटी का लाभ नहीं मिलता. चार साल की सेवा के बाद पूर्व सैनिक का दर्जा नहीं दिया जाता है. यदि किसी अग्निवीर की ड्यूटी पर मौत हो जाती है तो परिवार को 1 करोड़ रु. तो मिलते हैं, पर शहीद का दर्जा नहीं मिलता. ऐसे में यह विषय भी चिंता के विषय है.