सोनीपत । केंद्र सरकार के खिलाफ कृषि कानूनों को लेकर चल रहे किसान आंदोलन को लेकर किसान नेताओं द्वारा मई के पहले पखवाड़े में पैदल संसद कूंच का ऐलान किया गया था. अब इस संसद कूंच को लेकर किसान नेता दो धड़ों में बट गए हैं. जहां संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल पंजाब के अधिकतर संगठनों के नेता परिस्थितियों को देखते हुए संसद मार्च के विरोध में खड़े हुए, वहीं हरियाणा व यूपी के किसान नेता संसद मार्च करने पर अड़े हुए थे.
इसको लेकर संयुक्त किसान मोर्चा की मीटिंग में घंटों तक हंगामा भी चला और नेताओं के बीच आपसी खींचतान के बाद दिल्ली मार्च को फिलहाल रद्द कर दिया गया है. अधिकतर किसान नेताओं का कहना था कि फिलहाल दिल्ली की सीमाओं पर लगी मोर्चाबंदी को मजबूत करने पर जोर दिया जाए और दिल्ली मार्च के लिए परिस्थितियों को देखते हुए बाद में रणनीति तैयार की जाएं.
कृषि कानूनों को रद्द कराने की मांग को लेकर किसान पिछले साढ़े चार महीने से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं. किसानों व सरकार के बीच 11 दौर की बातचीत के बावजूद भी समस्या का समाधान नहीं निकल सका. आन्दोलन लंबा खींचने व सरकार के साथ ढाई महीने से बातचीत ना होने से किसानों का भी धैर्य टूटने लगा है. इसे देखते हुए ही मई के शुरुआत में संसद तक पैदल मार्च का ऐलान किया गया था. लेकिन अब संसद मार्च को लेकर पंजाब व हरियाणा के किसान संगठनों में कलह हो गई है.
फिलहाल संसद कूंच के कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया है. अब यह कहना ठीक नहीं होगा कि कौन संसद मार्च चाहता था और कौन नहीं चाहता था. आगे परिस्थितियों को देखते हुए रणनीति तैयार की जाएगी और उसके अनुसार ही संसद मार्च को लेकर फैसला हो सकता है. इस समय धरनास्थलो पर भीड़ बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.- गुरनाम सिंह चढूनी, अध्यक्ष भाकियू हरियाणा
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