नई दिल्ली । कोरोनावायरस की तीसरी संभावित लहर का बच्चों पर क्या असर पड़ेगा, इस बारे में लगातार अध्ययन जारी है. विशेषज्ञ और वैज्ञानिक भी अपने अलग-अलग दावे पेश कर रहे हैं. इसी कड़ी में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और AIIMS का सर्वेक्षण सामने आया है. एक समाचार एजेंसी ने इस सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा है कि कोरोनावायरस की संभावित तीसरी लहर का बच्चों पर अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना कम है.
सर्व में सामने आया है कि वयस्कों के मुकाबले बच्चों में सार्स-सीओवी-2 की सीरो पॉजिटिविटी रेट अधिक थी. इस सर्वेक्षण के लिए देश के पांच राज्यों को चुना गया था. समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार सार्स कोवी-2 की सीरो पॉजिटिविटी रेट बच्चों में वयस्कों की तुलना में ज्यादा पाई गई, इसलिए ऐसी संभावना नहीं है कि भविष्य में कोविड-19 का मौजूदा स्वरूप दो वर्ष और इससे ज्यादा उम्र के बच्चों को ज्यादा प्रभावित करेगा.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सीरो -पॉजिटिविटी खून में एक विशेष प्रकार की एंटीबॉडी की मौजूदगी है. इस सर्वेक्षण के लिए 2 से 17 साल की आयु वर्ग के 700 बच्चों को जबकि 18 या इससे ज्यादा आयु वर्ग के 3809 लोगों को शामिल किया गया था. 18 वर्ष से कम उम्र के आयु वर्ग समूह में सीरो मौजूदगी 55.7 फीसदी पाई गई जबकि 18 वर्ष से अधिक उम्र के आयु समूह में 63.5 फीसदी दर्ज की गई. अध्ययन में पाया गया कि शहरी स्थानों (दिल्ली) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में सीरो-पॉजिटिविटी दर कम पाई गई. आंकड़े जुटाने की अवधि 15 मार्च से 15 जून के बीच की थीं.
फिर भी सरकार तीसरी लहर की आंशका को देखते हुए अपने स्तर पर हरसंभव प्रयास करने में जुट गई है. सरकार ने अपने दिशानिर्देश में स्पष्ट किया है कि कोरोना के वयस्क रोगियों के उपचार में आने वाली आइवरमेकटिन, हाइड्रोकसी क्लोरोक्वीन,फैविपिराविर जैसी दवाएं और एजिथरोमाइसिन जैसी एंटीबायोटिक दवाएं बच्चों के उपचार के मुफीद नहीं है.
सरकार ने कहा है कि बच्चों के बेहतर उपचार के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों को क्षमता बढ़ाने के काम शुरू कर दिए जाने चाहिए. हस्पतालों में कोरोना संक्रमित बच्चों के लिए अलग बेड्स की व्यवस्था की जानी चाहिए. सरकार की ओर से जारी निर्देशों में यह भी कहा गया है कि कोविड हस्पतालों में बच्चों की देखभाल के लिए अलग जगह बनाईं जानी चाहिए, जहां बच्चों के साथ उनके माता-पिता को आने-जाने की इजाजत हों.