नई दिल्ली | आधुनिकता के इस युग में किसान परम्परागत खेती का मोह त्याग कर बागवानी और ऑर्गेनिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं. फलों और सब्जियों की खेती कर किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा रहे हैं. इसी कड़ी में हम आपको आलू की 4 ऐसी किस्मों की जानकारी देंगे जो तीन महीने में बंपर पैदावार से आपको मालामाल बना देगी. खास बात यह है कि ये किस्में अन्य किस्मों के मुकाबले कम पानी में भी तैयार हो सकेगी.
बता दें कि आलू एक प्रमुख नकदी फसल है जिसे हर घर में पूरे साल इस्तेमाल किया जाता है. इसकी खपत ज्यादा है तो खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है. राष्ट्रीय स्तर पर करीब 90 फीसदी आलू की खेती उत्तरी मैदानी भागों में की जाती है. यहां रबी के मौसम में आलू उगाया जाता है. जलवायु परिवर्तन के दौर में आलू उत्पादक किसान फसल के जैविक और अजैविक दोनों कारणों से जूझते हैं.
होगी 20 फीसदी पानी की बचत
आमतौर पर एक किलो आलू पैदा करने के लिए 125 लीटर पानी की खपत होती है, लेकिन आलू की इन किस्मों में लगभग 80-100 लीटर पानी की ही आवश्यकता होती है यानि कि इन किस्मों की खेती करने में 20 फीसदी तक पानी की बचत होती है. आलू की खेती 15 से 25 सितंबर और इसकी पछेती बुवाई के लिए 15-25 अक्टूबर तक का समय सबसे बेहतर होता है. किसान आलू की कम पानी दक्षता वाली किस्मों की खेती के जरिए अधिक उत्पादन कर अपनी आय बढ़ा सकते हैं. प्रमुख 4 किस्मो की जानकारी निचे दी गई है:
कुफरी थार-1
यह अच्छी उपज वाली और कम पानी वाले क्षेत्रों की आलू की प्रजाति है. यह कुफरी बहार और सीपी 1785 के बीच क्रॉस से एक क्लोनल चयन है. बता दे इसका गूदा सफेद-क्रीमी रंग का होता है. यह किस्म 90 दिनों में 30-35 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है.
कुफरी थार-2
यह किस्म उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और छत्तीसगढ़ के कम पानी वाले क्षेत्रों में उपजाने के लिए बेहतर है. एक किलो आलू पैदा करने के लिए इसमें 75 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है. यह 30 टन प्रति हेक्टेयर तक उपज देने में सक्षम है.
कुफरी थार-3
यह किस्म हरियाणा, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के लिए बेहतर है. इसे कुफरी ज्योति और जेएन 2207 के बीच क्रॉस से विकसित किया गया है. यह प्रति किलो 38 लीटर पानी की बचत करती है. यह किस्म पिछेता झुलसा रोग के प्रति कुछ हद तक प्रतिरोधी हैं और 90 दिनों में ही तैयार हो जाती है. इसकी उपज 32-34 टन प्रति हेक्टेयर तक रहेती है.
कुफरी गंगा
कुफरी गंगा को मैदानी क्षेत्रों में 75-90 दिनों में उपजाकर 35-40 टन प्रति हेक्टेयर की उपज ली जा सकती है. इसका गूदा सफेद-क्रीमी रंग का होता है. यह किस्म पिछेता झुलसा रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी होती है.
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