हिसार । भारतीय नस्ल के कुत्ते विदेशी नस्लों के कुत्तों से कम नहीं है. दक्षिण भारत में पाए जाने वाले चिप्पिपरई नस्ल का कुत्ता कोरोनावायरस को सूंघ कर पता लगाने में सक्षम है. बता दें कि देसी नस्ल के कुत्तों को प्रशिक्षण देकर अगर बढ़ावा दिया जाए तो यह सेना, रेस्क्यू ऑपरेशन में पुलिस की सहायता विदेशी नस्ल के कुत्तों की तुलना में अधिक अच्छे तरीके से कर सकते हैं.
देसी नस्लों के कुत्तों की खासियतों की जा रही है पहचान
पिछले कई सालों से इन पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है . परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पहले मन की बात कार्यक्रम में देसी नस्ल के कुत्तों पर देश का ध्यान आकर्षित किया था. उसी दिशा में अब वैज्ञानिकों ने भी उन नस्लों पर शोध करना शुरू कर दिया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को हाल ही में सरकार ने 15 करोड रुपए का शोध प्रोजेक्ट दिया है. इस प्रोजेक्ट में वैज्ञानिक देसी नस्ल के कुत्तों की विशेषता पता लगाने का काम करेंगे.
साथ ही इन नस्लों का पंजीकरण भी करवाएंगे. मन की बात कार्यक्रम से आईसीएआर को प्रेरणा मिली है. इसके बाद से अभी तक तीन भारतीय नस्ल के कुत्तों की ब्रीड पंजीकृत हो चुकी है. इन्हें करनाल स्थित राष्ट्रीय पशु अनुवांशिक संस्थान जिलों के माध्यम से पंजीकृत कराया गया है. इन नस्लों में राजपलयम और चिपीपराई आदि शामिल है. अभी देश मे 13 नस्ले और बाकी है. जिनकी खासियत और उन्हें पहचान दिलाने बाकी है.
देश में अलग-अलग स्थानों में पाए जाने वाले भारतीय नस्ल के कुत्तों की अलग-अलग खासियत है. इन्हें अधिक अच्छा भोजन न मिलने पर भी यह अपने आप को अच्छे तरीके से रख सकते हैं. किसी भी हालात में अपने आप को ढाल सकते हैं. परंतु विदेशी नस्ल के कुत्तों के साथ ऐसा नहीं है. विदेशी नस्ल के कुत्तों की बात करें तो जो नस्ल ठंडे इलाकों की उन्हें ठंडा वातावरण चाहिए और जो गर्म क्षेत्रों में रहती है उन्हें दूसरे वातावरण में परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
इसके साथ ही कई बार देशी नस्ल के कुत्तों को पूर्व में शिकार के लिए प्रयोग किया जाता था. इनकी खासियतओं का विज्ञानी करनाल स्थित राष्ट्रीय पशु अनुवांशिक संस्थान पता लगा रही है. आईसीएआर नई दिल्ली के पशु विज्ञान प्रभाग के उप महानिदेशक डॉ बीएन त्रिपाठी ने कहा कि भारत सरकार ने देसी नस्ल के कुत्तों पर शोध के लिए प्रोजेक्ट तैयार किया है.
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