नूंह | हरियाणा के नूंह जिले के बीवां गांव में एक किसान परिवार की कहानी सबसे अलग ओर खास है. ऐसा इसलिए क्योंकि उस किसान के बच्चे पैदा नहीं हुए. इस किसान ने पेड़- पौधों को अपनी संतान माना और सभी प्रकार के फलदार, फूलदार और छायादार पेड़- पौधे लगाकर इस अनपढ़ किसान ने पढ़े- लिखे किसानों को आईना दिखाने का काम किया.
ट्रक ड्राईवर था किसान
नाजम खान का जन्म 1 जनवरी 1963 को बीवां गांव में फजरू के घर हुआ था. फजरू एक किसान परिवार से थे. प्रारंभ में नाजम ने अपने माता- पिता से पारंपरिक खेती सीखी और युवावस्था में ट्रक ड्राइवर बन गए और लगभग 15 वर्षों तक ट्रक चलाया. इसी बीच नाजम की पत्नी मकीना बीमार पड़ गई और उसके परिवार ने उसे सूचित किया. उस वक्त वह ट्रक लेकर मद्रास गए थे. बरसात का मौसम था और डेढ़ माह तक आना संभव नहीं हो सका.
तब नाजम ने अपनी लाचारी जाहिर करते हुए अपने बड़े भाई से पत्नी का इलाज कराने को कहा. मगर बड़े भाई ने कहा कि अगर किसी के बच्चे नहीं हैं तो इतनी भागदौड़ करने और परेशानी झेलने की क्या जरूरत है. उसी दिन से नाजम अपने गांव में रहने लगे और पूसा इंस्टिट्यूट दिल्ली की एक टीम से ट्रेनिंग लेने लगे. उन्होंने न केवल पूसा इंस्टिट्यूट दिल्ली जाकर ट्रेनिंग ली बल्कि उसके बाद वह कई बार किसान यात्राओं पर गए.
नाजम खान ने फूल, फल आदि नई तकनीक के बारे में जानकारी जुटाई. सफेद मिर्च, गुलाबी भिंडी, चुकंदर, मूली और शलगम जैसी सब्जियां उगाई हैं. 5 किलो की मूली और 5 किलो की शलगम देखने के लिए नाजम के यहां लोगों की भीड़ लगी थी, इसलिए नाजम ने 3 फीट लंबी सब्जी भी उगाई.
नई तकनीकों से हो रहा बीज तैयार
नाजम ने कहा कि पल्ला इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक का ध्यान गया और उन्होंने नौकरी दे दी. नाजम को वहां लगभग 12,000 रुपये हर महीने मिल रहे हैं और नाजम दिन- रात छायादार, फूलदार और फलदार पौधों को उगाने में लगे हुए हैं. यह किसान न केवल पेड़ों की खेती कर रहे हैं बल्कि नई तकनीकों के लिए बीज भी तैयार कर रहा है. इस अनपढ़ किसान ने जो कर दिखाया है, शायद ही देश का कोई किसान ऐसा कर पाया हो.
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