पानीपत | आधुनिकता के इस युग में जागरूक किसान परम्परागत खेती का मोह त्याग कर नकदी फसलों की खेती का रूझान करने लगे हैं और इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं. कुछ ऐसा ही उदाहरण पेश किया है पानीपत जिले के गांव ताजपुर से जहां एक चाचा- भतीजे की जोड़ी ने इंजिनियर की नौकरी छोड़ कर खुद का ऐसा व्यवसाय शुरू किया कि आज वे परिचय के मोहताज नहीं है.
ऐसे दिमाग में आया आइडिया
चाचा विजय और भतीजे रिंकू ने बताया कि एक बार दादा जी बाज़ार से गुड़ खरीद कर लाए थे तो घर आकर देखा कि उसमें कीड़ा लगा हुआ था. बस इसी बात से निराश दादा जी ने छोटे स्तर पर खेत में ही गुड़ बनाने का कलेसर लगा दिया. बाद में उस काम को हम दोनों ने आगे बढ़ाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते उनके आर्गेनिक गुड़ की डिमांड बढ़ने लगी.
शुरुआत में उन्होंने 20 एकड़ जमीन पर आर्गेनिक विधि से गन्ना उगाया था लेकिन व्यापार चलने पर उन्होंने आसपास के खेतों को भी ठेके पर ले लिया. आज 120 एकड़ जमीन पर आर्गेनिक विधि से गन्ना उगाया जा रहा है. आज न केवल उन्हें लाभ हो रहा है बल्कि गन्ने की रोपाई से लेकर गुड़ बनाने के काम में स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिल रहा है. उनके कलेसर पर आज 100 से अधिक लोग काम करते हैं.
देश ही नहीं विदेशों में भी डिमांड
भतीजे रिंकू ने बताया कि गुड़ की गुणवत्ता व स्वाद लोगों के ऐसा सिर चढ़कर बोल रहा है कि खरीदने के लिए उनके कलेसर पर ही पहुंच जाते हैं. लोकल बाजार के अलावा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उनके गुड़ की सप्लाई होती है. उनके यहां चार प्रकार का गुड़, खांड और शक्कर तैयार की जाती है. एक और खास सुविधा उनके कलेसर पर उपलब्ध है जो लोग गुड़ में ड्राई फ्रूट्स भी चाहते हैं तो वे स्पेशल आर्डर देकर बनवा सकते हैं.
करोड़ो रूपए पहुंचा सालाना टर्नओवर
रिंकू ने बताया कि जब गुड़ बनाने का काम शुरू किया था तो सालाना आमदनी दो से तीन लाख रूपए थी लेकिन आज प्रोजेक्ट की क्वालिटी और ईमानदारी से काम करने की प्रेरणा से सालाना टर्नओवर 8 करोड़ रूपए तक पहुंच गया है. लोगों को गुड़ की क्वालिटी पर भरोसा है और इस भरोसे पर खरा उतरना ही हमारे बिजनेस की सबसे बड़ी कामयाबी है. ऐसे में चाचा- भतीजे की इस जोड़ी की कामयाबी अन्य किसानों के लिए भी एक मिसाल कायम कर रही है.
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