नई दिल्ली| किसान आंदोलन के समय पर पहली दफा संयुक्त मोर्चा की बैठक में किसानों में फूट नजर आई है. ऐसे में बीते दिन रविवार को मीटिंग में हरियाणा भाकियू के अध्यक्ष गुरनाम चढूनी पर आंदोलन को राजनीति का अड्डा बनाने, कांग्रेस के साथ मिल कर राज नेताओं को बुलाने व दिल्ली में एक्टिव रुप से काम कर रहे हरियाणा के एक कांग्रेस नेता से आंदोलन के नाम पर लगभग 10 करोड़ रुपए लेने जैसे और भी कई गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं. ऐसे में काफ़ी लोगों द्वारा आरोप था कि वह कांग्रेसी टिकट के बदले में हरियाणा सरकार को गिराने की डील भी कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ चढू़नी ने उन पर लगे इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है.
एक ओर बैठक की अध्यक्षता कर रहे किसान नेता शिव कुमार कक्का ने भी संवाददाताओं के समक्ष अपनी बात रखते हुए कहा है कि बैठक में मोर्चा के सदस्य उन्हें जल्द से जल्द मोर्चे से निकालना चाहते थे, किन्तु आरोपों की जांच करने के लिए 5 सदस्यों की कमेटी बनाई गई है. इस कमेटी की तरफ़ से अब जनवरी माह की 20 तारीख़ को रिपोर्ट जमा की जाएगी. अंत में उसी के आधार पर अंतिम निर्णय लिया जा सकता है.
आंदोलन से जुड़े लोग NIA के सामने पेश नहीं होंगे
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) किसान आंदोलन में टेरर फंडिंग जैसे अहम मुद्दे पर जांच कर रही है. ऐसे ने आंदोलन से जुड़े कुल 50 से भी अधिक लोगों को समन भेज दिए गए हैं, किन्तु इससे नाराज़ किसान संगठनों ने साफ़ तौर पर अपनी बात रखते हुए कहा है कि उनसे जुड़ा कोई भी नेता या फ़िर कार्यकर्ता NIA के सामने पेश नहीं होगा. किसान आंदोलन की ओर से राष्ट्रीय जांच एजेंसी को किसी भी प्रकार से सहयोग नहीं दिया जाएगा.
मान ने कहा- किसानों की बात नहीं रख सकता तो कमेटी में रहने का कोई हक नहीं
कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई कमेटी से भूपिंदर सिंह मान की ओर से इस्तीफा पत्र दिया जा चुका. ऐसे में भूपिंदर सिंह मान ने जिस प्रकार से कमेटी को छोड़ दिया है तो तभी से उनके इस्तीफे को लेकर उन्हें धमकियां मिलने लगीं है. साथ ही साथ ऐसे भी कई कयास लगाए जाने लगे जिनका हमने किसान आंदोलन में बैठे हुए किसानों से बातचीत कर हल ढूंढ़ने की कोशश की है.
किसानों सहित मान से हुई बातचीत का मुख्य अंश
सवाल- क्या आप पर किसी प्रकार का कोई दबाव था?
नहीं| ऐसा कुछ भी नहीं है, न तो विदेशी संगठनों की ओर से, न ही संस्थाओं का और न ही सत्ता पक्ष का दबाव था. ऐसे में यह सिर्फ़ अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि मुझे किसी से धमकी मिली है.
सवाल- कमेटी से इस्तीफा देने जैसा अहम फैसला क्यों किया?
जब वे सभी किसान कमेटी से बात ही नहीं करना चाहते, मैं इनकी आवाज रिपोर्ट में दर्ज़ ही नहीं कर सकता तो फिर सदस्य बने रहने का मुझे कोई हक नहीं है.
सवाल- क्या आपको फैसला लेने में कोई दिक्कत आ रही थी?
मैंने बीते 48 घंटे तक लगातार विचार किया है कि क्या मैं किसानों की आवाज उठा सकता हूं, तो फिर मेरे अंतर्मन से आवाज आई कि इस समय पर यह मुम्किन नहीं है. ऐसे में फिर मैंने चीफ जस्टिस से वार्ता के दौरान ही 15 मिनट के भीतर ही अपना इस्तीफा दे दिया.
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