रेवाड़ी | महाभारत कालीन नगरी हरियाणा के रेवाड़ी को अलग- अलग वक्त में विभिन्न नामों से जाना जाता रहा है. किसी काल में लोग इसे पीतल नगरी के नाम से बुलाते थे, जो आज भी कभी- कभी इसका नाम पीतल नगरी के नाम से संबोधित किया जाता है. इसके पीतल का इतिहास लगभग 500 वर्ष पुराना है. आमतौर पर कहा जाता है कि कई वर्ष पहले रेवाडी में पीतल के हथियार बनाये जाते थे जिनका प्रयोग युद्धों में भी किया जाता था. रेवाडी शहर में एक पीतल बाजार हुआ करता था जो समय के साथ एक आम बाजार में परिवर्तित हो गया. आज इसे ब्रास मार्केट के नाम से जानते हैं.
महाराजा ने शुरु किया था पीतल की तोपों का निर्माण
पानीपत के युद्ध में पीतल की तोपों का प्रयोग किया गया था. कहा जाता है कि जब पानीपत की पहली लड़ाई हुई थी तो पहली बार रेवाड़ी में बनी पीतल की तोपों का इस्तेमाल किया गया था. सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य (हेमू) रेवाडी के रहने वाले थे. उन्होंने ही रेवाडी में पीतल की तोपें बनाने का काम शुरू किया. जिसके बाद, रेवाडी में पीतल का कारोबार बढ़ता चला गया. आज भी रेवाड़ी में पीतल के शानदार बर्तन बनाए जाते हैं.
हर घर में होता था पीतल का कारोबार
पहले रेवाडी के हर घर में पीतल का काम होता था. पीतल व्यापारियों का कहना है कि आजादी के बाद रेवाड़ी में बड़ी मात्रा में पीतल के बर्तनों का इस्तेमाल होता था. शहर के पंजाबी मार्केट के आसपास लगभग हर घर में पीतल के बर्तन बनते थे. इस उद्योग से जुड़े बीरबल का कहना है कि उनके दादा, पिता और अब वह भी 30 साल से पीतल का काम कर रहे हैं लेकिन अब पीतल का काम काफी कम हो गया है.
क्या कहते हैं व्यापारी बीरबल?
व्यापारी बीरबल कहते हैं कि कुछ समय पहले तक करीब 600 परिवार इस उद्योग से जुड़े थे लेकिन, समय के साथ पीतल का काम धीमा होता गया जिससे यह आंकड़ा 600 से घटकर 100 परिवारों तक ही सीमित रह गया. आज लगभग व्यापारियों ने पीतल का काम छोड़ दिया है. समय के साथ कारोबारियों के बच्चे पढ़- लिखकर अन्य शहरों में या नौकरियों पर चले गए.
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