रेवाड़ी | हरियाणा के रेवाड़ी जिले में पिछले तीन दिन से लगातार हो रही भारी बारिश से कपास की फसल पर संकट के बादल मंडरा सकते हैं. जिसके कारण बड़ी मात्रा में पैदावार प्रभावित होने की आशंका है. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के मुताबिक, जिले में इस बार 10,000 हेक्टेयर भूमि में कपास की खेती की गई है, जिस पर इस बारिश का सीधा असर पड़ेगा.
तीन दिन से लगातार हो रही बारिश से फसल में सफेद मक्खी (रस चूसक) व हरा तेला कीट तथा जड़ गलन (फंगस) रोग लगने की संभावना है. जिनके लग जाने से पेड़ की जड़ गलने लगती हैं और पत्ते मुरझा जाते हैं. कृषि विशेषज्ञ डॉ. संजय यादव ने बताया कि ये कीट कपास के पौधे पर पत्ते के निचली सतह पर बैठती हैं जो धीरे- धीरे पत्ता का रस चूस लेती हैं. इससे पत्ते सिकुड़ने लग जाते हैं और पेड़ पत्ते के जरिए सूर्य की किरणों से प्रकाश संशलेषण विधि से भोजन बनाने में असमर्थ रहते हैं.
जिसके कारण वह पेड़ ही धीरे- धीरे या तो नष्ट हो जाते हैं या अच्छी पैदावार नहीं दे पाते. वहीं, कपास के खेतों में पानी भरने से पेड़ों की जड़ें गलने लगती हैं और पेड़ नष्ट होने की संभावना बन जाती है.
इन कीट व रोगों से बचाव के उपाय
कृषि विशेषज्ञ डॉ. संजय यादव ने बताया कि सफेद मक्खी (रस चूसक) व हरा तेला कीट तथा जड़ गलन (फंगस) रोग के लग जाने से कपास की फसल पर बुरा असर पड़ेगा. इन रोग तथा कीटों से बचाव के लिए किसान खेतों में जाकर समय- समय पर फसल की देखभाल करते रहें तथा उचित मात्रा में उचित दवाई का छिड़काव व रासायनिक खादों का प्रयोग करें. इससे फसल का बचाव किया जा सकता है. इसके अलावा, क्षेत्र के कृषि विकास अधिकारी व अन्य कृषि विशेषज्ञ से समय- समय पर जानकारी लेते रहें ताकि रोग व कीटों के नुकसान से फसल को बचाया जा सके.
फसल में इन दवाईयों का करें छिड़काव
कृषि विशेषज्ञ ने बताया कि किसान फसलों में सफेद मक्खी व हरा तेला कीटों से बचाव के लिए नीम ऑयल, ईमिडाक्लोरोपिड तथा मैटासिस्टॉक्स का छिड़काव कर सकता है. किसान प्रति एकड़ खेत में नीम ऑयल 1 लीटर दवाई को 150- 200 लीटर पानी में, ईमिडाक्लोरोपिड 50 से 60 एमएल दवाई को 150- 200 पानी में तथा मैटासिस्टॉक्स 250- 400 एमल दवाई को 150-200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकता है. इसके अलावा, जड़ गलन रोग (फंगस) से बचाव के लिए किसान एक एकड़ फसल में 400 एमएल मैनकोजेब दवाई को 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर दें ताकि फसल को रोगों व कीटों से बचाया जा सकेगा.
कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर करें छिड़काव
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