रेवाड़ी | देशभर में लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो चुकी है और इसको लेकर सभी राजनीतिक दल अपनी- अपनी तैयारियों में जुट गए हैं. वहीं, नेताओं के भी पार्टी छोड़ने का सिलसिला जारी हो चुका है. इसी कड़ी में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को बड़ा झटका लगा है, जहां पूर्व की बंसीलाल सरकार में मंत्री रहे जगदीश यादव (Jagdish Yadav) ने बीजेपी को अलविदा कह दिया है. वे बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री भुपेंद्र हुड्डा की उपस्थिति में कांग्रेस पार्टी का दामन थामेंगे. कांग्रेस में उनकी एंट्री हुड्डा गुट के जरिए ही हो रही है.
बुधवार यानी कल जगदीश यादव अपने समर्थकों के काफिले के साथ दिल्ली स्थित राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा के आवास स्थल पर पहुंचेंगे. इस दौरान भुपेंद्र हुड्डा सहित अन्य कांग्रेसी नेताओं की मौजूदगी में वो कांग्रेस पार्टी में शामिल होंगे. उनके कांग्रेस पार्टी में शामिल होने से रेवाड़ी जिले की कोसली विधानसभा क्षेत्र में अलग ही राजनीतिक माहौल देखने को मिलेगा.
2019 में बीजेपी में हुए थे शामिल
साल 1996 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जगदीश यादव तत्कालीन बंसीलाल सरकार में मंत्री बने थे. 2014 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी उम्मीदवार से करीबी हार झेलने वाले जगदीश यादव ने 2019 में बीजेपी का दामन थाम लिया था. उन्हें कोसली से टिकट मिलने की पूरी उम्मीद थी लेकिन टिकट नहीं मिलने के बावजूद भी उन्होंने बीजेपी में अपनी आस्था बनाएं रखी.
पिछले काफी समय से वो पार्टी में अनदेखी का शिकार हो रहे थे और प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ की टीम में भी उन्हें जगह नहीं दी गई थी. ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री भुपेंद्र हुड्डा से नजदीकियां के चलते उनकी कांग्रेस पार्टी में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थी. मंगलवार यानि आज उनके निजी सचिव की ओर से जगदीश यादव के कांग्रेस पार्टी में शामिल होने का संदेश जारी कर इस बात पर पक्की मुहर लगाई गई.
रामपुरा हाउस के खिलाफ एंटी राजनीति
अपने राजनीतिक करियर में हमेशा रामपुरा हाउस की एंटी राजनीति करने वाले जगदीश यादव को पिछले चुनावों में जिन कांग्रेस और बीजेपी प्रत्याशियों से हार का सामना करना पड़ा था उन पर रामपुरा हाउस का पूरा आशिर्वाद रहा था. चार साल पहले जब उन्होंने INLD छोड़कर बीजेपी ज्वाइन की थी तो उस समय केन्द्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह पहले से ही बीजेपी में थे.
जगदीश यादव कोसली विधानसभा से टिकट मिलने की उम्मीद में भाजपा में शामिल हुए थे लेकिन यहां बीजेपी ने अपने पुराने पदाधिकारी और राव इंद्रजीत सिंह के खासमखास लक्ष्मण सिंह यादव को चुनावी रण में उतारा और उन्हें जीत भी हासिल हुई थी. ऐसे में तभी से उनके अलग रास्ता पकड़ने की अटकलें जोर पकड़ने लगी थी.
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