रोहतक । कोविड महामारी के चलते रोहतक पीजीआई में समस्याएं कम होने का नाम ही नहीं ले रही है. रोहतक पीजीआई आक्सीजन की कमी से तो पहले ही जुझ रहा था और अब अब खून की कमी के रूप में एक ओर समस्या आन खड़ी हो गई है. ताज़ा जानकारी के मुताबिक पीजीआईएमएस के ब्लड बैंक में “ओ” पॉजिटिव ब्लड की कुल 7-8 यूनिट ही बची हुई है. “बी” पॉजिटिव लगभग खत्म होने के कगार पर है.
अन्य ब्लड ग्रुप की भी लगभग 10-10 युनिट ही बची हुई है. हालात को देखते हुए 100 यूनिट खुन की हर रोज जरूरत है, लेकिन महामारी के चलते रक्तदान करने वाले नहीं आ रहे हैं. मरीजों के परिजन जो रक्तदान करते हैं, उसके बदले में उन्हें दूसरा रक्त दे दिया जाता है. ब्लड की इमरजेंसी को देखते हुए विभागाध्यक्ष के प्रशासन ने रक्तदान शिविर आयोजित करने की मंजूरी ली है. शिविर के दौरान अगर रक्तदाता खुलकर सामने नहीं आएं तो आने वाले दिनों में स्थिति और ज्यादा गंभीर हो सकती है.
हर 15 वें दिन 20 थैलेसीमिया रोगियों को ख़ून चाहिए
पीजीआई में थैलेसीमिया रोग से पीड़ित 20 से 25 रोगी ऐसे आते हैं ,जिनको हर 15 वें दिन ख़ून की जरूरत पड़ती है. ऐसे रोगियों को समय पर खुन नहीं मिला तो इनके लिए ओर समस्या पैदा हो सकती है. इसके अलावा लेबर रूम में डिलीवरी के दौरान भी खुन की जरूरत रहती है. एक्सिडेंटल केसों में भी ख़ून चाहिए होता है.
कोरोना काल से पहले पीजीआई में रोजाना 180-200 यूनिट खुन की खपत हर रोज होती थी. कोविड की वजह से इलेक्टिव सर्जरी भी बंद हैं. लेकिन फिर भी लेबर रूम, एक्सिडेंटल केस व थैलेसीमिया रोगियों के लिए 100 यूनिट रक्त रोजाना चाहिए.
“बी+” की सबसे ज्यादा मांग
बड़ी संख्या में लोगों का ब्लड ग्रुप “बी+” होने की वजह से “बी पॉजिटिव” रक्त की जरूरत ज्यादा रहती है. इसके बाद” ए+” की खपत सबसे ज्यादा होती है.” ए-बी ” पाज़िटिव ब्लड ग्रुप की जरूरत भी ज्यादा होती है. फिलहाल नेगेटिव ब्लड ग्रुप का स्टॉक तो पीजीआई के पास बचा हुआ है.
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