रोहतक और झज्जर में बने दीयों की बढ़ी डिमांड, इन्हीं से जगमग होगी गुजरात और मुंबई की दिवाली

रोहतक | कुछ समय पहले तक चीनी आइटम्स की देशभर में तूती बोलती थी. हिंदुस्तान का कोई भी त्यौहार हो उसे चीनी मार्केट ने लपक रखा था. आलम यह था कि भारतीयों से ज्यादा चीनियों को भारतीय त्योहारों का इंतजार रहता था. क्योंकि त्योहारों का समय ऐसा समय होता है जब हर कोई अपने घर के लिए सजावट इत्यादि का सामान लेकर आता है. हालांकि, धीरे- धीरे लोगों ने चीनी सामानों से पीछा छुड़वाना शुरू कर दिया और देसी विकल्पों को अपनाना शुरू कर दिया.

Deepak Diya Deepawali Diwali

कुछ समय पहले जहाँ दिवाली के त्योहार पर चीनी लड़ियाँ आदि बाजार की रौनक बढ़ाते नजर आते थे, लेकिन अब लोगों ने इन्हें नकार कर दीयों को अपनाना शुरू कर दिया है. इससे हमारे स्थानीय लोगों को रोजगार तो मिल ही रहा है. साथ ही, इनसे आत्मीयता का भी बोध होता है.

मुंबई- गुजरात तक बिक रहे रोहतक- झज्जर के दिये

वर्तमान में हरियाणा के रोहतक और झज्जर में बने दीयों की काफी ज्यादा डिमांड हो चुकी है. रोहतक और झज्जर के दिये तो प्रदेश के अलग- अलग जिलों के साथ गुजरात और मुंबई में भी जमकर बेचे जा रहे हैं. इसके अलावा, आसपास के जिलों में भी उनकी काफी ज्यादा मांग हो चुकी है. इस व्यवसाय से जुड़े कुम्हार वर्ग के लोग दिवाली के त्योहार से करीब डेढ़ से 2 महीने पहले ही इनकी तैयारी करना शुरू कर देते हैं, ताकि दिवाली पर हो रही मांग को पूरा किया जा सके.

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रोहतक निवासी कुम्हार रमेश कुमार बताते हैं कि उनके बनाए हुए दीयों को गुजरात और मुंबई तक भेजा जा रहा है. इसके अलावा भिवानी, रेवाड़ी, हिसार, कलानौर और आसपास के शहरों में भी उनकी मांग बढ़ी हुई है.

15 सालों से कर रहे ये काम

भिवानी, रेवाड़ी, हिसार, कलानौर और आसपास के शहरों में भी उनकी मांग बढ़ी हुई है. वह बताते हैं कि वह पिछले 15 सालों से यह काम कर रहे हैं. उनके पिता से उन्होंने यह काम सीखा और अब वह चार तरह के दिए बन रहे हैं. एक छोटा, दूसरा मध्यम, तीसरा बड़े आकार का होता है. चौथा दिया चार मुंह वाला बनाया जाता है.

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साल भर चलता है ये काम

इनको बनाने में डेढ़ से 2 महीने पहले ही तैयारी में जुटना पड़ता है. 1 साल तक यह काम चलता है. इनके लिए वह पाहसौर गांव से मिट्टी लाते हैं. एक ट्राली मिट्टी ₹10,000 में पड़ती है. दिये बनाने के पहले मिट्टी को कुचल कर छान लिया जाता है. उसे बारीक पीसकर भिगो लेते हैं. इसके बाद, जो घोल बनता है, उसे छलनी से छाना जाता है. इस प्रक्रिया में मिट्टी तैयार होने में 4 से 5 दिन का समय लग जाता है, तब जाकर दिये बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है. गुजरात और मुंबई में दीयों का निर्माण नहीं होता, इसलिए रोहतक और झज्जर से भी दीयों का निर्यात गुजरात और मुंबई किया जा रहा है.

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दीयों से घर होता है शुद्ध

इस काम से होने वाली कमाई काफी कम होती है. इस विषय में कुम्हार रमेश कुमार बताते हैं कि इस कमाई से वह केवल अपने परिवार का गुजारा ही कर पाते हैं. वह सरकार से प्रोत्साहन राशि देने की भी अपील करते हैं. वह बताते हैं कि दीवाली जैसे त्योहार पर मिट्टी के दिये इस्तेमाल करने से पर्यावरण शुद्ध होता है. साथ ही, घर में शुद्धता भी आती है. यह दिये नकारात्मक ऊर्जा को भी खत्म करते हैं.

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