रोहतक | हरियाणा खेलों का हब बन चुका है. हर खेलों में हरियाणा राज्य का दबदबा है. इसी क्रम में रोहतक में एक ऐसे पिता हैं, जिन्होंने अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए असिस्टेंट कमांडेंट की नौकरी तक छोड़ दी. बता दे मकड़ौली कलां निवासी रणबीर सिंह ने बीएसएफ से वीआरएस लेने के बाद खुद ही बच्चों को कबड्डी के गुर सिखाए.
बेटी अक्षिमा ने अपने कोच पिता से गुर सीखे और अपनी मेहनत के दम पर एशियाई खेलों में टीम को स्वर्ण पदक दिलाने में अहम योगदान देकर खुद को साबित कर दिखाया है. बेटी ने अपने पिता को पदक के रूप में उनके सपने को साकार करने में मदद की.
अक्षिमा के खेल की गति ने बदली सोच
रणबीर सिंह ने बताया कि एक दिन जब वह अपने बेटे के साथ कबड्डी की प्रैक्टिस के लिए जा रहे थे तो अक्षिमा ने उन्हें भी अपने साथ चलने के लिए कहा. मैदान पर पहुंच कर वह भी उसके साथ खेलने लगी. यहां वह उसके खेल और उसकी स्पीड को देखकर दंग रह गए और उसे कबड्डी चैंपियन बनाने की ठान ली. 2017 में 12वीं के बाद अक्षिमा ने कबड्डी खेलना शुरू किया और करीब एक साल बाद उन्होंने एमडीयू की ओर से ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में गोल्ड मेडल जीता.
पहले ही साल में पदक जीतने वाली अक्षिमा साल 2018 में एमडीयू टीम की कप्तान बनीं. दो साल तक टीम का नेतृत्व किया. विश्वविद्यालय के लिए पदक प्राप्त किये. अब उन्होंने एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर अपने पिता का सपना पूरा कर लिया है. फिलहाल, अक्षिमा का लक्ष्य ओलंपिक में देश के लिए मेडल लाना है. इसके लिए कड़ी कवायद चल रही है.
वजन कम होने के कारण एशियन गेम्स से रहे वंचित
बता दें कि रणबीर सिंह कबड्डी के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रह चुके हैं. अपने खेल के दम पर वह बीएसएफ में सिपाही के पद पर भर्ती हो गये. स्पोर्ट्स कोटे से भर्ती के बाद भारतीय टीम में जगह बनाने वाला यह खिलाड़ी हर मेडल के साथ प्रमोशन पाते हुए असिस्टेंट कमांडेंट के पद तक पहुंच गया. इसके बाद, जब एशियन गेम्स में खेलने का मौका आया तो विशेषज्ञों ने यह कहकर मना कर दिया कि आपका वजन कम है.
उस वक्त उनका वजन करीब 58 किलो था जबकि प्रतियोगिता के लिए वजन 70 किलो से अधिक होना चाहिए. बस यही दर्द मेरे दिल में बस गया. इस कारण साल 2016 में वीआरएस ले लिया. नौकरी छोड़ने के बाद तीन में से दो बड़ी बेटियों की शादी हो गई. यही नतीजा रहा कि अब बेटी ने गर्व से सीना चौड़ा कर दिया है.
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