14वीं सदी का बंजारा वाला कुआं, दिल्ली व लाहौर के व्यापारियों का होता था पड़ाव

रोहतक । खरावड़ गांव का बंजारा वाला कुआं जो अपने मीठे पानी के लिए आसपास के इलाकों में बहुत लोकप्रिय था ,आज प्रशासन व संबंधित विभाग की अनदेखी के चलते अपनी पहचान खो चुका है. जिस जगह पर कभी रौनक हुआ करती थी आज उसकी वीरान हालत देखकर हर कोई मायूस रह जाता है. बंजारा वाला कुआं के इतिहास पर नजर डाली जाए तो यह गांव के बसने से पहले निर्मित है. इस कुएं का निर्माण 14 वीं सदी के शुरुआती वर्षों में बंजारों (व्यापारियों) ने करवाया था. दिल्ली और लाहौर के व्यापारी यहां रुककर कुएं के शीतल जल से अपनी प्यास बुझाते थे.

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गांव के रिटायर्ड कैप्टन जगबीर मलिक ने बताया कि पुराने जमाने में पीने के पानी के साधन बहुत कम हुआ करतें थे और लोग जोहड़ के पानी पर निर्भर थे. किसी साल बारिश नहीं होने पर पीने के पानी को लेकर भाग-दौड़ मच जाती थी. दिल्ली और लाहौर के व्यापारी आते-जाते समय यहां पड़ाव डाला करते थे . लाहौर से हापुड़ व्यापार मार्ग पर यह कुआं स्थित है. व्यापारी समूह में ऊंटों व घोड़ागाड़ी से सफर तय करते थे.

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पड़ाव को देखते हुए किसी एक व्यापारी समूह ने यहां कुएं का निर्माण करवाया था. कुएं पर शीतल जल की उपलब्धता होने से व्यापारी यहां रात्रि ठहराव करने लगे थे. लाहौर से कसूरी मेथी, लाल मिर्ची व अन्य मसालों को बेचने के लिए व्यापारी फिरोजपुर, डबवाली, सिरसा, हिसार, रोहतक , बहादुरगढ़ व दिल्ली के रास्ते हापुड़ तक का सफर तय करते थे. इसी प्रकार हापुड़ से गुड़,खांड व अन्य खाद्य पदार्थ लेकर इसी रास्ते दिल्ली व आसपास के क्षेत्र के व्यापारी लाहौर को प्रस्थान करते थे.

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गांव के इतिहास को समेटे है कुआं

कैप्टन जगबीर मलिक बताते हैं कि खरावड़ के साथ कारौर,नौनंद,गांधरा,चुलियाना व अन्य क्षेत्र के लोग भी इस कुएं से पानी भरने आते थे. गांव में बहुत ही कम लोगों को इस कुएं के स्वर्णिम इतिहास की जानकारी है. नई पीढ़ी के युवाओं को कुओं के महत्व की जानकारी नहीं रही है. कुओं का गांव की परंपरा व रीति-रिवाजों से गहरा नाता होता है. संबंधित विभाग व प्रशासन को कुएं के जीर्णोद्धार के प्रति प्रयास करने चाहिए.

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