हिसार | महासागरों के तापमान में पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. सामान्य तौर पर समुद्र का तापमान 27 डिग्री सेल्सियस से नीचे पाया जाता है लेकिन हाल ही का बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का उदाहरण लिया जाएं तो इनके तापमान में सामान्य से 4 से 5 डिग्री अधिक बढ़ोतरी होने से हमें मई माह में दो भीषण चक्रवात देखने को मिलें. अरब सागर में ताउते चक्रवात और बंगाल की खाड़ी से उठें यास चक्रवात ने समुद्री तटों पर भीषण तबाही मचाई.
तापमान की बढ़ोतरी से समुद्री जीव-जंतुओं और मछलियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है. चक्रवातों की वजह से तेज आंधी व भारी बारिश तटीय क्षेत्रों में पेड़-पौधों व फसलों को काफी नुकसान पहुंचाती है. यहां तक कि इनके प्रभाव से हवाएं हरियाणा- पंजाब तक पहुंचकर मौसम -चक्र को परिवर्तित कर रही है. मौसम चक्र के इस बदलाव का असर सीधे-सीधे कृषि पर पड़ रहा है. इसके कारण नए-नए कीट व रोग फसलों में उत्पन्न हो रहें हैं. इसी असर को कम करने के लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार ऐसी तकनीक विकसित कर रहा है जो पर्यावरण को संरक्षित रखने में भी सहायक हों और साथ ही फसल उत्पादन में वृद्धि हो जिससे खाद्य सुरक्षा मजबूत बनें.
तीन विशेषज्ञों से समझिए पर्यावरण संरक्षण और कृषि के बीच का रिश्ता…
पर्यावरण परिवर्तन नए कीटों के आक्रमण की वजह
एचएयू के कुलपति डॉ बीआर कंबोज ने बताया कि मौजूदा समय में जलवायु परिवर्तन से शुद्ध हवा की मात्रा में गिरावट, जल- स्तर में बदलाव, हिम पिघलना ,नये-नये कीटों का आक्रमण इत्यादि प्रभाव स्पष्ट रुप से देखें जा रहें हैं. विभिन्न कृषि तकनीक जैसे ज़ीरो टिलेज ,फसल अवशेष प्रबंधन ,जल प्रबंधन आदि को अपनाकर पर्यावरण संरक्षण की ओर कदम उठाया जा सकता है.
गेहूं के जीवन- चक्र में आया बदलाव: डॉ राठौड़
भारत मौसम विज्ञान विभाग के पूर्व महानिदेशक डॉ लक्ष्मण सिंह राठौड़ ने बताया कि स्वस्थ जीवन के लिए शुद्ध हवा, पानी व भोजन बहुत ही जरूरी है. तापमान में अत्यधिक बढ़ोतरी से गेहूं की फसल के जीवन चक्र में बदलाव देखने को मिला है. तापमान व वर्षा की प्रवृत्ति में बदलाव होने से न सिर्फ खेती प्रभावित हो रही है बल्कि इसका प्रभाव राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पर भी देखा जा रहा है. जलवायु परिवर्तन से समुद्रों के तापमान में सामान्य से अधिक बढ़ोतरी होने से भीषण तुफानों का सामना करना पड़ा और भविष्य में भी ऐसी संभवानाएं ना आएं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता.
एक तिहाई मौतों के लिए वायु प्रदुषण जिम्मेदार: डॉ सतीश
हिमाचल प्रदेश के पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सतीश भारद्वाज ने ह्रदयघात, सांस संबंधी बीमारियां और फेफड़ों के कैंसर से होने वाली कुल मौतों में से एक तिहाई मौतों के लिए सीधे-सीधे वायु प्रदुषण को जिम्मेदार ठहराया है. कार्यक्रम के समापन अवसर पर विभागाध्यक्ष डॉ मदन खिचड़ ने सभी का आभार व्यक्त किया.
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