यमुनानगर | हरियाणा के यमुनानगर के प्रगतिशील किसान धर्मबीर कंबोज चरम पर बढ़ती बेरोजगारी के शिकार हो गए थे. दिल्ली से सटे यमुनानगर शहर के किसान के ऊपर चारों तरफ मुसीबतें आ गईं. किसान के पास कोई ऐसा रास्ता नहीं बचा था कि उसका सहारा लेकर मुसीबतों से छुटकारा पा सके. आर्थिक तंगी के चलते मजबूर होकर प्रगतिशील किसान धर्मबीर कंबोज दिल्ली की सड़कों पर रिक्शा चलाने लगे. सड़क दुर्घटना के कारण उन्हें वापस अपने गांव लौटना पड़ा था. उसके पिता किसान थे लेकिन खेती के नाम पर उनके पास मुट्ठी भर जमीन ही थी. इसमें परिवार का गुजारा मुश्किल था.
एक मशीन ने बदली धर्मबीर की पूरी जिंदगी
किसान धर्मबीर ने संकट के इस दौर में पारंपरिक खेती के इतर जड़ी- बूटियों की खेती पर ध्यान दिया. इससे भी उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ. फिर उन्होंने तकनीकी खेती करने का फैसला किया. उन्होंने एक मल्टीपर्पज फूड प्रोसेसिंग मशीन बना डाली. तब से इस किसान की जिंदगी बदल गई है. आज इस किसान की गिनती बड़े उद्यमियों में होती है. उनकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों के कई परिवारों को रोजगार मिला है.
विदेशों में निर्यात किए जा रहे धर्मबीर के उत्पाद
यमुनानगर के प्रगतिशील किसान धर्मबीर कंबोज की मल्टीपर्पज फूड प्रोसेसिंग मशीन में जड़ी- बूटी अर्क निकाला जा सकता है. यह अर्क कई तरह की बीमारियों में राहत देने का काम करता है. आज इस मशीन की मदद से स्किनजेल, शैंपू, साबुन, हेयर ऑयल, नेचुरल परफ्यूम, हैंडवॉश, गुलाब जल, जैम, टोमैटो केचप, हल्दी पेस्ट, एलोवेरा, जामुन, पपीता का रस जैसे 100 से अधिक उत्पाद बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के पौधों का उपयोग किया जाता है. इन उत्पादों का विश्व के कई देशों में निर्यात भी किया जा रहा है.
राष्ट्रपति द्वारा दिया गया खास सम्मान
किसान धर्मबीर कंबोज की इसी समझ के चलते देश के तत्कालीन राष्ट्रपति ने उन्हें 20 दिनों तक राष्ट्रपति भवन में विशिष्ट अतिथि रहने का सम्मान भी दिया है. किसान धर्मबीर की शैक्षिक योग्यता केवल 10वीं है लेकिन उनके पास देश- विदेश के विशेष प्रतिनिधि हैं जो उनसे खेती के टिप्स लेते हैं और उनकी मशीनें भी खरीदते हैं. आज आलम यह है कि जिस किसान को उसके गांव वाले पागल कहते थे उसका आज विश्वस्तरीय धंधा है. धर्मबीर के इस बुलंद जज्बे की तारीफ करने वालों में पूर्व राष्ट्रपति महामहिम डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, प्रतिभा पाटिल, प्रणब मुखर्जी जैसे बड़े नाम शामिल हैं.
बेहद कठिन और संघर्षपूर्ण रहा सफलता का सफर
किसान धर्मबीर कंबोज ने बताया कि मैट्रिक के बाद वह रोजगार की तलाश कर रहा था. घर में बहन और मां की तबीयत खराब थी. मां के देहांत के बाद बहन के इलाज के लिए उसके सिर पर काफी कर्ज आ गया था. इसी दौरान उसकी शादी भी हो गई और पिता की 2 एकड़ जमीन में खेती होने के कारण परिवार का गुजारा मुश्किल था. फिर सोचा कि मैट्रिक पास हूं क्यों न दिल्ली जैसे बड़े शहर में जाकर कोई नौकरी कर लूं. दिल्ली गया तो सर्दी का मौसम था, ठंड से बचने के लिए कपड़ा नहीं था. जेब में कुल 70 रुपए थे, भूख मिटाना मुश्किल हो रहा था. घर लौटने के लिए भी पैसे नहीं बचे थे. दिल्ली में कोई अपना नहीं था जो मदद करता, मेरे मन में आया कि क्यों न रिक्शा चलाना शुरू किया जाए.
दुर्घटना के कारण घर लौट आया
दसवीं का सर्टिफिकेट सिक्योरिटी के तौर पर रख रिक्शा लिया. वह दिन में कड़ी मेहनत करता था और रात में थक कर रिक्शा चलाता था और फुटपाथ पर सो जाता था. रिक्शा चलाते हुए मैंने दिल्ली में कई ऐसी चीज़ें देखीं जो मैंने अपने गांव में पहले कभी नहीं देखी थीं. दिल्ली में बिक रहे टोमैटो केचप फ्रूट जैम, जेली और टॉफी सहित कई नए उत्पाद जो जीवन में पहली बार देखे गए. जब मैंने जड़ी- बूटियों को देखा तो सोचा कि क्यों न इसी की प्रोसेसिंग शुरू कर दी जाए. मैंने तो बस सपना संजोया था कि सड़क दुर्घटना हो गई. चोट बहुत लगी, रिक्शा चलाना नामुमकिन था, घर वापस लाना पड़ा.
ऐसे शुरु किया फूड प्रोसेसिंग का बिजनेस
घर में टमाटर की खेती शुरू की. हाईब्रिड सब्जियां उगाईं, जड़ी -बूटियों की खेती की, उन्हें प्रोसेस करके बाजार में बेचना शुरू किया. जड़ी- बूटियों का भी बाजार में अच्छा दाम नहीं मिल रहा था तो उद्यानिकी विभाग के साथ अजमेर पुष्कर के दौरे पर निकले. वहां देखा कि महिलाएं आंवले के लड्डू बना रही थीं. गुलाब जल और गुलकंद बनाना. मेरे मन में आया कि क्यों न ऐसा ही एक काम शुरू किया जाए. जरूरत थी एक ऐसी मशीन की जिसमें फल, सब्जियां, जड़ी- बूटियां प्रोसेस की जा सकें और उनसे निकाला जा सके. डिजाइन बनाने के बाद डीएचओ ने उन्हें 25 हजार की ग्रांट दी.
आराम से चला सकती हैं गांव की महिलाएं
इसके बाद, ऐसी मशीन बनाई गई जिसमें हर तरह की जड़ी- बूटियों और फलों को भी प्रोसेस किया जा सकता है. सभी प्रकार के फूलों को संसाधित करके उनकी सुगंध से प्राकृतिक इत्र बनाया जा सकता है. यह मशीन सिंगल फेज बिजली से चलती है और इस मशीन में बिना बीज तोड़े 1 घंटे में 200 किलो आंवले को कद्दूकस किया जा सकता है. इस मशीन में तुलसी डालकर तुलसी का अर्क या तुलसी का तेल भी निकाला जाता है.
जामुन का जूस और जामुन का पेस्ट बिना बीज तोड़े भी बनाया जा सकता है. इस मशीन में अश्वगंधा को प्रोसेस करके अश्वगंधारिष्ट समेत 100 से ज्यादा उत्पाद बनाए जा सकते हैं. वह लोगों को प्रशिक्षण देकर रोजगार भी दे रहे हैं. गांव की महिलाएं भी इस मशीन को आराम से चला सकती हैं, इसके लिए ज्यादा पढ़ाई की जरूरत नहीं है.
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