यमुनानगर । कहते हैं कि शिक्षा से बड़ा कोई हथियार नहीं होता है और शिक्षा ही एक ऐसी चीज है जो आखिरी दम तक आदमी का साथ निभातीं है. एक शिक्षित व्यक्ति समाज में जो बदलाव कर सकता हैं उसकी मिसाल दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन जाती है. ऐसे ही बदलाव की एक कहानी के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं.
आज से करीब 5 वर्ष पहले हरियाणा के यमुनानगर जिलें के छोटे से गांव खुर्दबन में सार्वजनिक सुविधाओं के नाम पर कुछ खास नहीं था और सामान्य तौर पर जीवन की गुणवत्ता ज्यादा अच्छी नहीं थी लेकिन आज यहां काफी कुछ बदल गया है. आज सुविधाओं के नाम पर इस गांव के पास एक लंबी फेहरिस्त है जिसमें एक बैडमिंटन हॉल,जिम,दो सामुदायिक पार्क और पंचायत द्वारा निर्मित कई दुकानें शामिल हैं जो यहां के निवासियों को सुविधा और रोजगार दोनों मुहैया करवा रही हैं.
गांवों में चारों ओर लगें सीसीटीवी कैमरे और चटकीले रंगों से रंगी आंगनबाड़ी, खिलौने और यहां तक कि एक एलसीडी स्क्रीन इसकी शान में चार चांद लगा रही हैं. गांव में सफाई व्यवस्था देखते ही बनती है. गांव का एक और आकर्षण 2 एकड़ में फैला पार्क है जिसमें अच्छी तरह से कटी घास, फव्वारे, बच्चों के लिए झूले और यहां तक कि एक खुला जिम भी है. यह पार्क दीवारों से घिरा हुआ है.
तो आखिर पांच सालों में गांव की कायापलट को लेकर जब ग्रामीणों से चर्चा की गई तो एक ही शख्स का नाम उभर कर सामने आया. ग्रामीणों ने बताया कि एक युवा, शिक्षित सरपंच जो यहां के निवासियों को अपने गांव के विकास में भाग लेने के लिए प्रेरित करने में कामयाब रहा. युवराज शर्मा को मात्र 27 वर्ष की उम्र में साल 2016 में इस गांव के सरपंच प्रतिनिधि के रूप में चुना गया था. विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त इस शख्श ने अपनी सरपंच वाली भूमिका पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, अंबाला के मुलाना में महर्षि मार्कंडेश्वर विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रॉनिक्स के सहायक प्रोफेसर के रूप में अपनी नौकरी छोड़ दी. सरपंच ने कहा कि उन्होंने पंचायत का चुनाव उस गांव की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए लड़ा, जहां उनकी फैमिली अभी भी रहती है.
अपनी उम्र के 32 साल पूरे कर चुके युवराज शर्मा ने बताया कि उनका अपना कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है और राजनीति में आने या फिर सरपंच बनने का कभी मेरा कोई इरादा भी नहीं था लेकिन गांवों से पलायन एक ऐसा मुद्दा था जो मुझे हर समय विचलित कर रहा था और मैंने सोचा कि इसके पीछे एक प्रमुख वजह यही है कि गांवों में लोगों के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. तभी मैंने ठान लिया था कि हमें गांव में इन मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने के लिए बड़ा कदम उठाना चाहिए.
युवराज शर्मा के सरपंच प्रतिनिधि रहते इस गांव की पंचायत ने केंद्र सरकार के पंडित दीन दयाल उपाध्याय ग्राम सशक्तीकरण पुरस्कार (2017, 2019), और नानाजी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार (2018) के अलावा राज्य सरकार के सिक्स स्टार पंचायत पुरस्कार (2019) भी जीते हैं. उन्होंने बताया कि करीब ढाई हजार की आबादी वाले इस गांव में अधिकांश परिवार कृषि और पशुपालन में लगे हुए हैं लेकिन विकास कार्यों में हर ग्रामीण द्वारा किया गया प्रयास सराहनीय है.
एक शिक्षित और तकनीक की समझ रखने वाला सरपंच
गांव के ही एक निवासी सुनील ने बताया कि युवराज शर्मा जैसा युवा और जानकार सरपंच का होना उनके लिए वरदान जैसा हैं. गांव वालों ने बताया कि पहले, गांवों में आमतौर पर एक अशिक्षित सरपंच होता था, इसलिए सरकार की कोई भी नई योजना अक्सर किसी के भी ध्यान नहीं आती थी. लेकिन जब एक शिक्षित और तकनीक की समझ रखने वाला व्यक्ति सरपंच बन जाता है, तो वे जानते हैं कि कौन-कौन सी योजनाएं शुरू की गई हैं और वे डिजिटल तकनीक की मदद भी लेते हैं ताकि उन्हें जनता तक पहुंचाया जा सके.
एक रोचक तथ्य यह भी है कि कोरोना महामारी के दौरान ई-पंचायत आयोजित करने वाला हरियाणा का पहला गांव खुर्दबन ही था. इस वर्चुअल बैठक में हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और सुधीर राजपाल, प्रमुख सचिव, विकास एवं पंचायत विभाग समेत करीब तीन सौ लोग शामिल हुए थे. युवराज शर्मा ने बताया कि उनका आगामी पंचायत चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है लेकिन जिस किसी को भी यह मौका मिलेगा, मैं उसका पूरा सहयोग करुंगा और गांव के सर्वांगीण विकास के लिए हमेशा प्रयासरत रहुंगा.
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