यमुनानगर | फिरोज शाह तुगलक द्वारा उखाड़ा गया अशोक स्तंभ काठ (रेहड़ा) और पुली के रास्ते नई दिल्ली ले जाया गया था. इसी तर्ज पर हरियाणा के यमुनानगर जिले के रादौर ब्लॉक के टोपरा कलां गांव में भारत की पहली लकड़ी और चरखी बनाई जाएगी. दोनों कैसे दिखेंगे इसकी 3D डिजाइन फोटो भी तैयार की गई है. इसका निर्माण अशोक पार्क डेवलपमेंट ट्रस्ट द्वारा करीब 40 लाख रुपये की लागत से किया जाना है.
विशेष लकड़ी से बनाएंगे गांव के कारीगर
बता दें कि दिल्ली लोकसभा में भी एक चित्रण है, जिसमें दर्शाया गया है कि कैसे 14वीं शताब्दी में अशोक स्तंभ को लकड़ी और चरखी के बाद नाव से ले जाया जाता था. अब 800 साल बाद इसी तर्ज पर यमुनानगर जिले के ब्लॉक रादौर के गांव टोपरा कलां में लकड़ी और पुली का निर्माण किया जाएगा. इसे गांव के पार्क में ही कारीगरों द्वारा विशेष लकड़ी से बनाया जाएगा.
याद ताजा करेंगी ऐतिहासिक चीजें
इस लकड़ी और चरखी का आकार भी वैसा ही होगा जैसा 800 साल पहले था. लकड़ी के पहिए भी पहले की तरह ही बनाए जाएंगे जबकि पुली के खंभे भी उसी तरह बनाए जाएंगे जैसे 3D डिजाइन फोटो में दिखाए गए हैं. माना जा रहा है कि इससे न सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि दोनों ऐतिहासिक चीजें उस दौर की यादें भी ताजा कर देंगी.
टोपरा कलां में बनाया था शुरु में अशोक स्तंभ
अशोक स्तंभ को टोपरा कलां गांव से यमुना नदी तक ले जाने के लिए पहले इसे सावधानीपूर्वक सूती रेशम में लपेटा गया और कच्चे रेशम से बने ईख के बिस्तर पर रखा गया. इसके बाद, इसे यमुना नदी तक ले जाने के लिए 42 पहियों वाली एक विशाल गाड़ी तैयार की गई. जिसे 8 हजार लोगों ने खींचा. अशोक स्तंभ जो अब दिल्ली में फिरोजशाह कोटला के अंदर है, इसे सबसे पहले सम्राट अशोक ने 273 और 236 ईसा पूर्व के बीच टोपरा कलां में बनवाया था लेकिन 1,453 में फिरोज शाह तुगलक इसे उखाड़कर दिल्ली ले गए.
इस प्रकार टोपरा कलां का पड़ा नाम
टोपरा कलां गांव का नाम अरबी भाषा में ऊपर से लिया गया है. इसी नाम से अफगानिस्तान में भी एक जगह है जो एक स्तूप था. यह गुंबद के आकार का था. टोपरा कलां गांव में बौद्ध स्तूप भी उन दिनों एक गुंबद जैसा था, इसलिए इस गांव का नाम टोपरा कलां पड़ा. गांव के रामकुंडी स्थान पर आज भी ऐतिहासिक चीजें निकलती रहती हैं.
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